हम अभिवादन में दो बार राम यानि राम-राम बोलते हैं।
वैदिक दृष्टिकोण से पूर्ण ब्रह्म का मांत्रिक गुणांक 108है। इसलिए माला मे108 मनके होते हैं।
दो बार राम राम कहने मात्र से यह गुणांक पूर्ण हो जाता है क्योंकि हिंदी वर्णमाला में 'र' 27 वां अक्षर हैं,'अ 'की मात्रा यानी 'आ' दुसरा अक्षर हैं और 'म' 25 वां अक्षर हैं।
र +आ+म=राम यानि 27+2+25=54
अब दो बार राम राम से
54+54=108 होता है।
इस तरह से दो बार राम राम कहने से पूरी माला यानी 108बार का जाप हो जाता है।
अब प्रश्न ये उठता है कि 108 ही क्यों?
वस्तुत मनुष्य दिन रात के चौबीस घंटो में 21600 बार सांसें लेता है। मनुष्य अपने 24 घंटे में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत करता है।अतः:शेष बारह घंटों में 10800 बार सांसें लेता है।
अतः शास्त्रों का मत है कि मनुष्य को दिन भर में 10800 बार ईश्वर का नाम लेना चाहिए। लेकिन व्यवहारिकता में इतना कर पाना संभव नहीं है लिहाजा इसके अंतिम दो शून्यों को हटा कर यानि108बार जाप करना चाहिए।
वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य एक वर्ष में 216000 कलाएं बदलता है। वर्ष के छह महीने दक्षिणायन और छः महीने उत्तरायण रहता है। उत्तरायण शुभ होता है तभी शरशैय्या पर कष्ट काटते हुए भीष्म ने प्राण त्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी।अतः एक आयण में सूर्य 108000 कलाएं बदलता है। इसमें से भी अंत के तीन शून्य हटा देने पर 108 ही शेष बचता है।
राम शब्द संस्कृत के दो धातुओं -
रम् और धम (धञ्) से बना है।रम् का अर्थ होता है रमना ,लीन होना या निहित होना।धम का अर्थ होता है ब्राह्मांड का खाली स्थान!
अर्थात सकल ब्रह्माण्ड में निहित या रमा हुआ तत्व यानि चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म हैं।
शास्त्रों के अनुसार "रमन्ते योगिन:अस्मिन सा रामं उच्यते"
यानि योगी ध्यानावस्था में जिस शून्य में रमते हैं वहीं राम हैं।
"रमते कणे कणे इति राम:"!
तुलसी दास जी ने कहा -"
"करऊं कहा लगी राम बड़ाई,
राम न सकहि नाम गुण गाई।"
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