उस दिन युद्ध में कौरवों का सेनापति कर्ण था जिसने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि आजके युद्ध समाप्ति पर वो जीवित रहेगा या अर्जून।कस कस कर एक से एक तीरों का प्रहार अर्जून के रथ, नंदीघोष (यह उसे वरुण देव से मिला था)पर कर था मगर अर्जून का रथ मात्र तीन कदम पीछे तक ही हटता था।वहीं अर्जून के प्रहार से कर्ण का रथ कोसों दूर पीछे चला जाता है। अर्जुन को अभिमान हो आया उसने हंसते हुए कृष्ण से कहा"देखिये कर्ण मुझसे बड़ा धनुर्धर होने की बात करता है जबकि वो मेरे रथ को मात्र तीन कदम पीछे ही धकेल पाता है"!
कृष्ण ने गंभीर होकर कहा" तुम्हारे रथ के ध्वजा पर परम वजनी बजरंग बली विराजमान हैं और सारथी तीनों लोकों के सारथी हैं अर्थात कर्ण अपनी प्रहार से समूचे सृष्टि को तीन कदम पीछे धकेल रहा है।"
अर्जून का सारा अभियान पानी के तरह बह गया...
महाभारत युद्ध के आरंभ में श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने हनुमानजी का आवाहन कर उनको रथ के उपर उनके पताका के साथ विराजित किया था। ब्रह्म कृष्ण स्वयं सारथी बने और पृथ्वी के नीचे से शेषनाग ने चक्कों पर नियंत्रण रखा था,ताकि किसी भी हाल में अकारण रथ पीछे न जाये।
युद्ध की समाप्ति पर अर्जुन ने भगवान से निवेदन किया कि वो रथ से पहले उतरें इस पर भगवान ने कहा नहीं पहले तुम उतरो!
प्रभु का आदेश पालन करते हुए अर्जुन रथ से उतर गए। तत्पश्चात् श्री कृष्ण जैसे ही रथ से उतरे, हनुमानजी तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और शेषनाग पाताल में समा गए।
ज्योंहि श्रीकृष्ण अर्जुन कुछ दूर लगभग घसीटते हुए पहूंचे रथ भीषण अग्नि के लपटों से धू धू कर जलने लगा। अर्जून ने हैरानी से इसका कारण पूछा।
श्रीकृष्ण ने तब बताया " ये रथ तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य,कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले जल गया था पर क्योंकि पताका लिए हनुमान जी और रथ पर मैं स्वयं था इसलिए रथ मेरे संकल्प से सुरक्षित था। संकल्प के पूर्ण होते ही मैंने रथ को मुक्त कर दिया और यह जलकर भस्म हो गया।
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