रक्षाबंधन पर भद्रा काल
जाने क्या है भद्रा
भद्रा एक अशुभ मुहूर्त है जिसके होने पर कोई भी शुभ कार्य करने के अशुभ परिणाम सामने आते हैं।
कौन हैं भद्रा ?
धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य और छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं। अपने भाई शनिदेव की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी बहुत कठोर माना जाता है। वह हर शुभ कार्य में बाधा डालती थीं। ऐसे में उनके पिता सूर्यदेव ने भ्रदा पर नियंत्रण पाने के लिए ब्रह्माजी से मदद मांगी। इसलिए ब्रह्माजी ने उन्हें नियंत्रित करने के लिए पंचांग के प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया था। उन्होंने कहा कि भद्रा लगी होने पर कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाएगा। लेकिन भद्रा के पश्चात उस कार्य को किया जा सकेगा।
भद्रा को लेकर लोकश्रुति
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि रावण की बहन सूर्पनखा ने भद्रा काल में भाई रावण को राखी बांधी थी जो कि उसके विनाश का कारण बना। कहते हैं कि इसी के बाद से एक-एक करके रावण सहित उसके पूरे कुल का नाश हो गया। वहीं यह भी माना जाता है कि भद्रा के वक्त भगवान शिव तांडव करते हैं और क्रोध की अवस्था में होते हैं। ऐसे में वक्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। वरना उसके परिणाम शुभ नहीं होते। इसलिए भाई को हर बुरी नजर से बचाने के लिए और उनकी दीर्घायु के लिए भूलकर भी भद्रा में राखी न बांधें।
कैसे जानें कि कब है भद्रा
जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। जब चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में स्थित होता है तो भद्रा का वास पाताल लोक में होता है।
भद्रा जिस लोक में रहती हैं वहीं प्रभावी होती हैं।
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