महर्षि कणाद
महर्षि कणाद एक प्राचीन भारतीय ऋषि, वैज्ञानिक और दार्शनिक थे, उन्होंने बताया कि भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है।
कणाद ने जॉन डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त को उजागर कर दिया था। महर्षि कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं अपितु उसको को "परमाणु" नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकते
कणाद गुजरात के प्रभास क्षेत्र में जन्मे थे।
उनका जन्म नाम कश्यप था। वे महान संत उल्का के पुत्र थे,महर्षि कणाद ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुए थे ,महर्षि कणाद वैशेषिक सूत्र के निर्माता, परंपरा से प्रचलित वैशेषिक सिद्धांतों के क्रमबद्ध संग्रहकर्ता एवं वैशेषिक दर्शन के उद्धारकर्ता माने जाते हैं। वे उलूक, काश्यप, पैलुक आदि नामों से भी प्रख्यात थे।
1.परामाणु सिद्धांत के जनक कणाद : महर्षि कणाद ने परमाणु के संबंध में विस्तार से लिखा है। यहां उस विस्तार से नहीं समझाया जा सकता। भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद थे।
2. गति के नियम : महर्षि कणाद ने ही न्यूटन से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। सर आइजक न्यूटन ने 5 जुलाई 1687 को अपने कार्य 'फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका' में गति के इन तीन नियमों को प्रकाशित किया।
।।वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते। वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु। वेगः संयोगविशेषविरोधी।।- वैशेषिक दर्शन
अर्थात् : वेग या मोशन (motion) पांचों द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
3.गुरुद्वाकर्षण सिद्धांत के जनक कणाद : पश्चिम जगत मानता है कि 1687 से पहले कभी सेव जमीन पर गिरा ही नहीं था। जब सेव गिरा तभी दुनिया को समझ में आया की धरती में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति होती है। हालांकि इस शक्ति को विस्तार से सबसे पहले भास्कराचार्य ने समझाया था। उपरोक्त संस्कृत सूत्र न्यूटन के 913 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा से 600 वर्ष पूर्व लिखा गया था। न्यूटन के गति के नियमों की खोज से पहले भारतीय वैज्ञानिक और दार्शनिक महर्षि कणाद ने यह सूत्र 'वैशेषिक सूत्र' में लिखा था, जो शक्ति और गति के बीच संबंध का वर्णन करता है। निश्चित ही न्यूटन साहब ने वैशेषिक सूत्र में ही इसे खोज लिया होगा। पश्चिमी जगत के वैज्ञानिक दुनियाभर में खोज करते रहे थे। इस खोज में सबसे अहम चीज जो उन्हें प्राप्त हुई वह थी 'भारतीय दर्शन शास्त्र।'
4. परमाणु सिद्धांत। के जनक जॉन डाल्टन (6 सितंबर 1766 -27 जुलाई 1844) को माना जाता है, लेकिन उनसे भी लगभग 2400 वर्ष पूर्व ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
महर्षि कणाद ने परमाणु को ही अंतिम तत्व माना। जीवन के अंत में उनके शिष्यों ने उनकी अंतिम अवस्था में प्रार्थना की कि कम से कम इस समय तो परमात्मा का नाम लें, तो कणाद ऋषि के मुख से निकला पीलव:, पीलव:, पीलव: अर्थात परमाणु, परमाणु, परमाणु। आज से 2600 वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था। महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे है।
वैशेषिक दर्शन वास्तव में एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। यह आत्मा को भी पदार्थ ही मानता है। वैशेषिक दर्शन अनुसार व्यावहारिक तत्वों का विचार करने में संलग्न रहने पर भी स्थूल दृष्टि से सर्वथा व्यवहारत: समान रहने पर भी प्रत्येक वस्तु दूसरे से भिन्न है। वैशेषिक ने इसके परिचायक एकमात्र पदार्थ 'विशेष' पर बल दिया है इसलिए प्राचीन भारतीय दर्शन की इस धारा को 'वैशेषिक' दर्शन कहते हैं।
दूसरा यह कि प्रत्येक नित्य द्रव्य को परस्पर पृथक करने के लिए तथा प्रत्येक तत्व के वास्तविक स्वरूप को पृथक-पृथक जानने के लिए कणाद ने एक 'विशेष' नाम का पदार्थ माना है। 'द्वित्व', 'पाकजोत्पत्ति' एवं 'विभागज विभाग' इन 3 बातों में इनका अपना विशेष मत है जिसमें ये दृढ़ हैं। विशेष पदार्थ होने से 'विशेष' पर बल दिया गया इसलिए वैशेषिक कहलाए।
6.कणाद का ग्रंथ : कणादकृत वैशेषिक सूत्र- इसमें 10 अध्याय हैं।
ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे।
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