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शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

Dharm & Darshan !! Gobar Ganesh !!

 *गोबर गणेश*


यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह *लेश मात्र* पता नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है ?? 

हमारे देश में *हिंदुओं* की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता परंतु भयवश वह चलती रहती है । 

आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुराचार होता है, उसको देख कर अपने *हिन्दू मतावलंबियों* पर बहुत ही अधिक तरस आता है और दुःख भी होता है । 

शास्त्रों में एकमात्र *गौ के गोबर* से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के *विसर्जन* का ही विधान है ।

गोबर से गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है *माता पार्वती* द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का । 

चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है । इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा :- *गोबर गणेश* इसलिए पूजा, यज्ञ, हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है । जिसको उपरांत में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया है । 

*अब समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है ????*

*भगवान वेदव्यास* ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को *वेदव्यास* जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा ।*वेदव्यास* जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया ।

 जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं*

वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे । निरंतर दस दिन तक लिखने के पश्चात *अनंत चतुर्दशी* के दिन इसका उपसंहार हुआ । 

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्किलन या उनके शरीर की उष्मा को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके उपरांत उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया, जिसे विसर्जन का नाम दिया गया । 

*बाल गंगाधर तिलक* जी ने अच्छे उद्देश्य से यह आरंभ करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा । 

गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है, परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है। आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने ऐश्वर्य, पैसे, दिखावे और समाचार पत्र में नाम छापने से बनाते हैं । जिसके जितने बड़े गणेश जी, उसकी उतनी बड़ी ख्याति, उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग और चढ़ावे का तांता । इसके पश्चात यश और नाम समाचार पत्रों में अलग ।

सबसे अधिक दुःख तब होता है जब *customer attract* करने के लिए लोग DJ पर फिल्मी गाने बजाते हैं। 

इसके उपरांत विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र ढंग से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है । *वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन* करने का परंतु हम लोग क्यों करते हैं यह समझ से परे है । 

क्या हम भी *वेदव्यास* जी के *समकक्ष* हो गए ??? 

क्या हमने भी *गणेश जी* से कुछ लिखवाया ? क्या हम *गणेश* जी के *अष्टसात्विक* भाव को शांत करने की *शक्ति* रखते हैं ??

*गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ* के बराबर बनाया जाता है और होना भी चाहिए, इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है । एक बात और *गणेश जी का विसर्जन बिलकुल शास्त्रीय नहीं है। 

* यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म, अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया । 

एकमात्र हवन, यज्ञ, *अग्निहोत्र* के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है । 

प्लास्टर ऑफ paris से बने, चॉकलेट से बने, chemical paint से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है ।*

इससे केवल प्रकृति के वातावरण, जलाशय, जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र, भूमि, हवा, मृदा इत्यादि को हानि पहुँचता है । इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला । हाँ *बाजारीकरण,* को अवश्य लाभ मिलता है परंतु इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी । 

इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है ।*

माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो विसर्जन करिये । किन्तु गोबर के गणेश या मिट्टी के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा *१ अंगुष्ठ* से बड़ी न हो ।

गणेश जी को कभी भी विदा नहीं करना चाहिए क्योंकि विघ्न हरता ही यदि विदा हो गए तुम्हारे विघ्न कौन हरेगा। क्या हमने कभी सोचा है गणेश प्रतिमा का *विसर्जन* क्यों?  

अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा देखी गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, और ३ या ५ या ७ या ११ दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करेंगे। 

आप सब से निवेदन है कि आप गणपति की स्थापना करें पर विसर्जन नही। 

*विसर्जन केवल महाराष्ट्र* में ही होता हैं क्योंकि गणपति वहाँ एक अतिथि बनकर गये थे, वहाँ लाल बाग के राजा *कार्तिकेय* ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन *माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि* वहीँ रही इनके रहने से लाल बाग *धन धान्य* से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। 

अब रही बात देश की अन्य स्थानों की तो गणेश जी *हमारे घर के स्वामी* हैं और घर के स्वामी को कभी विदा नही करते वहीं यदि हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ *लक्ष्मी जी व रिद्धि सिद्धि* भी चली जायेगी तो जीवन मे बचा ही क्या। हम बड़े चाह से कहते हैं *गणपति बाप्पा मोरया अगले वर्ष तू शीघ्र आ* इसका अर्थ हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को *बलपूर्वक* पानी मे बहा दिया, तो आप स्वंय सोचो कि आप किस प्रकार से *नवरात्रि पूजा करोगे, किस प्रकार दीपावली पूजन* करोगे और क्या किसी भी शुभ कार्य को करने का अधिकार रखते हो जब आपने उन्हें एक वर्ष के लिए भेज दिया। 

*इसलिए गणेश जी की स्थापना करें पर विसर्जन कभी न करे।*

निवेदन

*श्री गणेश चतुर्थी पर गणपति जी की पारंपरिक मूर्ति खरीदें,*

जिसमे गणेश जी के मूल स्वरुप की प्रतिकृति हो, ऋद्धि - सिद्धि विद्यमान हो ।

*बाहुबली गणेश, सेल्फी लेते हुए स्कूटर चलाते हुए ऑटो चलाते हुए बॉडी बिल्डर बाहुबली सिक्स पैक या अन्य किसी प्रकार के अभद्र स्वरुप में गणेश जी को बिठाने का कोई औचित्य नहीं है। 

सभी से निवेदन है वास्तविक गणेश जी की प्रतिमा का स्थापना करें.

ॐ  एकदंताय नमो नमः...

सभी इसको अध्ययन और मनन करे, तत्पश्चात स्वयं विचार करे....

गणेश जी हमारे घर के मन्दिर में पहले से ही विराजित हैं तो उनकी ही विशेष पुजा करनी चाहिए जय गणेश जी महाराज की 

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