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शनिवार, 30 सितंबर 2023

Dharm & Darshan !! Shubhrak ka balidan !!

 *कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा था*

 *यह तो सब जानते हैं,* 

*लेकिन कैसे .....?*


*यह आज हम आपको बताएंगे..*


*वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,*

*लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!*


*तो मित्रो आज सुनिए* 

*कहानी 'शुभ्रक' की......*


*कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया*, 


*और*

 *उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।*


*कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,*


*जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।*


*एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई..* 


*और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया।*


*यह तय हुआ कि* 

*राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..*

.

*कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।*


*'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा,* 

*उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।* 


*जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया,* 


*तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया..* 


*उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया* 


*और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए,*


*जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!*


*इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..* 


*मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए।* 


*'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी..* 


*लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!*


*राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया,* 


*तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।*


*सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..*


*भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता,जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।*


*नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..*



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