इसके बाद नीचे सुबीर नीलांजना और ड्राइवर लंगर वाले स्थान पर पहुँचे । सभी बाहर जूते चप्पल उतार उतार कर जा रहे थे बारह से ज़्यादा बज रहे थे । सभी को भूख लगी थी ।स्टील की खाँचे वाली थालियों का ढेर था , तीनों ने एक एक थाली उठाई एक व्यक्ति चावल और दूसरा सब्ज़ी तथा कढ़ी परोस रहा था । टेबल तथा बैठने के लिए स्टूल थे । तीनों बे खाना खाया और प्लेटें शो कर रखीं अब उन्हें वृंदावन जाकर hotel ढूँढना था
जब वे बाहर आए तो नीलांजना के जूते ग़ायब थे । नीलांजना मुस्कुराई फिर ज़ोर से हंस कर सुबीर से बोली मेरे जूते चोरी हो गए । वास्तव में नीलांजना के वे जूते उसने बहुत पहने थे , पुराने भी थे , घिसे हुए थे ,ऊपर से उनका लुक बहुत अच्छा ही था । जिसने भी चुराए वह काफ़ी समय तक उसे पहन सकता है यही सोच कर नीलांजना मुस्कुरा रही थी ।नीलांजना कार तक नंगे पैर ही चली गई उसने बैग से चप्पल निकाल ली जो वह घर से ले आई थी । वृंदावन में नीलांजना कार में ही बैठी रही सुबीर और वह ड्राइवर ही दो होटेल देख कर नापसंद कर दिए । तीसरा देखने सुबीर अकेले गए और तुरंत ही नीलांजना को संकेत कर के बुला लिया । यह कमरा अच्छा था , चूँकि उसका AC ख़राब था अतः वह बारह सौ के स्थान पर मात्र आठ सौ रुपए में था । नीलांजना वैसे भी AC पसंद नही करती थी , उसे लगता था कि AC में रहने से घुटनों का दर्द बढ़ जाता है । अतः उसने तुरंत ही कमरे के लिए हाँ कर दी । ड्राइवर ने ही उस होटेल वाले लड़के से बेड शीट बदलने को कह दिया । सुबीर और ड्राइवर नीचे टैक्सी से सामान लाने चले गए और वह लड़का धुली बेडशीट लाने । अब तक डेढ़ बज चुका था । सामान रख कर सुबीर बिसलेरी लाने चले गए । नीलांजना को अपने भोलेनाथ जी की चिंता हो रही थी । उसने सुबीर से चाभी माँग ली थी । इस चाभी की एक रिंग में एक चाभी तथा दूसरी रिंग में दूसरी अपेक्षाकृत छोटी चाभी थी ।यहाँ यह स्पष्ट कर देना सही होगा कि नीलांजना को आरम्भ से ही पूजा करने की आदत रही , कोरोना काल में उसने महामृत्युंजय पाठ आरम्भ किया तथा जनवरी से , भोलेनाथ को रुद्राषट्क उच्चारण के साथ स्नान करवाने का शुभ कार्य आरम्भ किया । अब नीलांजना जहां भी जाती अपने साथ अपने भोलेनाथ की मूर्ति और उनका स्नान का ताम्हण साथ ही के जाती जिससे पूजा कार्य की निरंतरता बनी रहे ।उसने छोटी चाभी से सूटकेस खोल कर भोलेनाथ जी को बाहर निकाला, यद्यपि वह प्रातः रुद्राषट्क पाठ कर चुकी थी किंतु उसने एक बार और स्वच्छ जल से भोलेनाथ को स्नान करवाया । तभी पता चला कि वृंदावन का पानी खारा है , प्रत्येक होटेल में चाहे वह फ़ाइव स्तर ही क्यूँ न हो । उसने बिसलेरी का उपयोग किया ।स्वच्छ धुली चादर तकिए देख कर दोनो को कुछ देर आराम करने की इच्छा हुई की किंतु तुरंत ही सुबीर को स्मरण हो आया कि आज की दवाई नही खाई । नीलांजना उठी तब सुबीर की दृष्टि चाभी के गुच्छे पर पड़ी , उसने से छोटी चाभी रिंग सहित ग़ायब थी । दोनो ने पंद्रह मिनट तक अपना बाक़ी का सामान पूरा छान मारा पर वह चाभी न मिली ।अब क्या होगा सूट्केस कैसे खुलेगा , सुबीर सूट्केस को बड़ी वाली चाभी से ही खोलने का प्रयास करने लगे क्यूँकि चाभी अंदर तक प्रवेश कर पा रही थी , अचानक ही खट की आवाज़ से ताला खुल गया ।यह नीलांजना के लिए एक ऐसी पहेली बन गई जिसका उत्तर उसे शायद कभी न मिले , अभी अभी उसने उस छोटी चाभी से सूट्केस खोल कर भोलेनाथ जी को बाहर निकाला सुबीर से कहा चाभी रख लो , और उस गुच्छे से एक रिंग सहित चाभी ग़ायब हो गई । नीलांजना की नींद उड़ गई थी ।
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