नीलांजना ठीक से देख भी नही पाई मन खिन्न हो उठा था । अब लग रहा था कि सात लोगों की टीम का मुखिया यही था , और मात्र सौ रुपया बोल कर लाने वालों का असली शिकार यहीं किया जाता था । मंदिर में दान एक स्वेच्छिक क्रिया है , श्रद्धा है , I.S. प्रकार भगवान को पर्दे में छुपा कर रखना और वसूली के बाद दर्शन देना लज्जाजनक है और सनातन धर्म पर ऐसे ही लोग कलंक लगाते हैं ।सुबीर और नीलांजना बाहर जाना चाह रहे थे किंतु निकलने वाला द्वार बाहर से बंद था । खटखटाने पर रास बिहारी ने द्वार खोला “ दर्शन हो गए ? हाँ , नीलांजना ने शुष्क स्वर में कहा । जब तक वे लोग अपने जूते पहन रहे थे रासबिहारी किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था । निश्चित रूप से अंदर वाले पंडित से ।उसका मुँह भी लटक गया और उसने कहा कि आप लोग जाइए मैं अभी यहीं ठहरूँगा । सुबीर ने उसे सौ की जगह दो सौ का नोट निकाल कर दिया । वह बोला आप मुझे सौ की जगह दो सौ दे रहे हैं , धन्यवाद ।
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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