निधि वन से निकल कर वे कालियादाह मंदिर बेटरी रिक्शॉ से पहुँचे ।यहाँ यमुना थी सामने ही , क्यूँकि कालिया नाग के कई फ़नों पर नृत्य कर कर के ही कान्हा ने उसे मार दिया था । यहाँ गोपियों के वस्त्र भी थे जो प्रायः कान्हा चुरा लिया करते थे जब वे यमुना में स्नान करने जया करतीं थीं । यहाँ पर कुछ लोग बोटिंग भी कर रहे थे । नीलांजना और सुबीर को अभी राधा वल्लभ मंदिर तथा , बाँके बिहारी मंदिर तथा प्रेम मंदिर जाना था अतः वे लोग आगे पैदल ही बढ़े । राधा वल्लभ मंदिर सीढ़ियाँ चढ़ कर जाना था । ड्राइवर ने कहा आप जाइए मैं यहाँ जूते चप्पल देखता हूँ । नीलांजना और सुबीर ऊपर खड़ी सीढ़ियाँ चढ़ कर दर्शन कर के लौटे । आगे बस लोग मार्ग बताते गए कि बाँके बिहारी मंदिर आगे ही है , और होर्डिंग भी लगे हुए थे । चूँकि मार्ग बाज़ार से होकर गुजर रहा था अतः ड्राइवर ने मंजीरे और मस्तक पर टीका लगाने का साँचा ख़रीदा । सुबीर को भूख लग आई थी अतः सामने ही गरमा गर्म मूँग के पकौड़े बनते देख रुक गए और कुछ पकौड़े के कर खाए । वहाँ से उठे तो बाँके बिहारी मंदिर की गली सामने ही थी । अब पुनः जूते रखने का प्रश्न उठा । नीलांजना ने बड़ा सा जूते लिखा होर्डिंग देखा । वे लोग वहाँ गए तो बक़ायदा टेबल कुर्सी पर एक युवक बैठ कर यह काम कर रहा था । उसके सामने साफ़ सुथरे नम्बर लिखे बैग सलीके से रखे थे ।वह टोकन दे रहा था उसी नम्बर का जिस नम्बर के बैग में व्यक्ति जूते रख रहा था । वहीं रैक पर सलीके से लोग बैग रख रहे थे जिनमे उनके जूते थे । इन तीनों ने भी अपने अपने जूते बत्तीस नम्बर बैग में रख कर रैक पर रखे और बाँके बिहारी मंदिर की ओर चल पड़े । प्रवेश स्थान पर कई सुरक्षा कर्मी थे । पुलिसकर्मी भी वहाँ ड्यूटी दे रहे थे ।लोगों की अपार भीड़ थी । ये सभी अंदर पहुँचे । अंदर लोग ज़ोर ज़ोर से भक्ति भाव से “ बोल बाँके बिहारी लाल की जय के नारे लगा रहे थे ।वातावरण उल्लास मय था । मूर्ति सामने ही दोनो ओर से कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर स्थित थी , ड्राइवर ने प्रसाद और पुष्प ख़रीदे थे अतः वह ऊपर चढ़ा , नीलांजना और सुबीर उसकी प्रतीक्षा करते भक्ति भाव से परिपूर्ण लोगों को देख देख आनंदित होते रहे । बाहर आकर जब जूते लेने पहुँचे तो पता चला कि दस रुपए एक जोड़ी के हिसाब से तीस रुपए बने ।
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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