अगला दिन गोवर्धन परिक्रमा का था । पूरे वृंदावन में पानी खारा क्यूँ है ? यह एक आश्चर्य जनक बात है क्या द्वारका का समुद्री पानी यहाँ आ पहुँचा है । प्रातः उठ कर सुबीर एवं नीलांजना सामने टपरी पर चाय पीने गए । टपरी वाला दो दो चाय बनाते गया और देते गया , उन्होंने चार चार चाय पी , वैसे भी आज कल के कप, नीलांजना को लगता है मानो दवाई का सिरप पीने के लिए बनाया गया हो । वे लोग होटेल आए और सुबीर दो दो लीटर की bottles आरो की नीचे होटेल से भर लाए ! दोनो ने एक एक बॉटल से नहाने का निश्चय किया और वैसा ही किया , बस सर पर धीरे धीरे पानी उँडेल कर शरीर भीगो लिया ।नीलांजना ने पूजा की और वे बिस्कुट खा कर बाहर आ गए , टैक्सी उन्हें उस स्थान पर ले गई जहां से गोवर्धन परिक्रमा आरम्भ होती थी । कई बेटरी रिक्शॉ वाले पीछे पड़ गए । सुबीर ने गुलाब नाम के एक व्यक्ति का चयन किया 400 रुपए में पूरा रिक्शॉ रिज़र्व कर लिया । उसने बताया कि यहाँ से परिक्रमा आरम्भ होती है तथा 26 किलोमीटर ड्राइव है
वैसे तो मार्ग में कई छोटे बड़े मंदिर हैं किंतु सुबीर और नीलांजना ने मुख्य मुख्य स्थानों पर ही उसे रुकने को कहा । मथुरा वृंदावन में कुल साढे पाँच हज़ार मंदिर हैं किंतु पौराणिक महत्व का कोई स्थान छूट न जाए इस बात का नीलांजना ने अवश्य ध्यान रखा । मार्ग में राधा कुंड तथा श्याम कुंड उन्होंने दूर से ही प्रणाम किए ।
त्रेता युग में हनुमान ने द्रोणगिरी पर्वत उठा लिया था क्यूँकि वे संजीवनी बूटी पहचान नही पा रहे थे । एक बार वे गोवर्धन गिरिराज को भी उत्तरांचल से उठा कर ले जा रहे थे रामसेतु निर्माण हेतु किंतु तभी राम का संदेश ( मानसिक ) प्राप्त हुआ कि अब उसकी आवश्यकता नही है , तब हनुमान ने देखा कि गोवर्धन अश्रु बहा रहा है , हनुमान द्वारा कारण पूछने पर उसने कहा कि वह राम की सेवा से वंचित हो रहा है तब राम ने संदेश दे कर कहा कि अगले युग में सात दिन रात वे उसे अपनी कनिष्ठा उँगली पर उठाए रखेंगे ।
उन्होंने उसके बाद मानसी गंगा नामक स्थान पर रिक्शा रुकने पर इस जल धारा में स्नान किया ( पानी के छींटे मार कर ) यह कृष्णा ने अपने मानस द्वारा उत्पन्न की हुई गंगा है जिसने गंगा की सभी विशेषताएँ उपस्थित हैं ।इसके पश्चात वे राजस्थान के एक स्थान पर पहुँचे “ जो मात्र कुछ किलोमीटर तक ही है “ इसका नाम पूँछरी का लौठा” है यहाँ पूँछरी नामक इस व्यक्ति का मंदिर है । पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण सभी से कहा करते की गोवर्धन की परिक्रमा करो , और वे स्वयं सबकी हाजरी लगाते थे । एक दिन पूँछरी नामक यह व्यक्ति वहाँ से गुजर रहा था । कृष्ण ने उसे अपने पास बुलाया और कहा “ यहाँ मेरे स्थान पर बैठो और सभी परिक्रमा करने वालों की हाज़िरी लगाओ, मैं राधा रानी के साथ परिक्रमा करने जा रहा हूँ । इसने हामी भरी और बैठ गया , कृष्ण नही लौटे , ग्वालिनों ने बार बार उससे पूछा “ पूँछरी का लौठा श्याम आयो ? “ वह ना में सर हिलाता , वह प्रतिदिन का रेकोर्ड कान्हा को देता है “ उसने पूछ लिया कि “ आप अभी तक आए नही ? कृष्ण। ए कहा कलियुग में आऊँगा । कुछ दूरी पर लंगर लगा था ( यहाँ स्थान स्थान पर लंगर लगता है ) रिक्शॉ वाले ने सुबीर से पूछ कर रिक्शॉ रोकी । वे जाकर प्रसाद के आए, गर्मागर्म पूरी सब्ज़ी और हलुआ , अत्यंत स्वादिष्ट । पानी के पाउच भी थे और पूरी श्रद्धा से लोगों को खिलाया जा रहा था । बस इसके आगे से रिक्शॉ वापिस आने के लिए मुड़ी । नीला जाना और सुबीर ने गन्ने का रस लिया और रिक्शॉ वाले की भी पिलाया । लौटने पर उसे चार सौ के स्थान पर पाँच सौ रुपए दिए । ड्राइवर भी भोजन कर चुका था । नीलांजना की दृष्टि सामने हाट पर पड़ी , उसने दो स्कार्फ़ और एक टॉप ख़रीदा । ड्राइवर चूँकि छठ का व्रत करता है और दिवाली बाद गाँव जाने वाला था उसने भी धोती तथा अंग वस्त्रम ख़रीदा । वे लोग वापिस लौट पड़े । पौने पाँच बजे घर पहुँचे । यह यात्रा संतोष से भरी थी
पुनश्च : पुलत्स्य ऋषि ( रावण के पूर्वज ) ने जब गोवर्धन को देखा तो द्रोणगिरी ( उसके पिता ) से उसे माँग लिया वे उसे काशी में स्थापित करना चाहते थे , किंतु मार्ग में वृंदावन में प्यास लगने के कारण उन्होंने गोवर्धन को नीचे रख दिया , जब पुनः उठाने का प्रयास किया तो नही उठा सके उन्होंने गिरिराज गोवर्धन को श्राप दिया कि वह प्रतिदिन राई के बराबर छोटा होता जाएगा और यह सत्य सिद्ध हुआ है । अभी गोवर्धन पर्वत की तरह न लग कर केवल धरातल से कुछ ऊँचा सा दृष्टिगत होता है
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