अप्रेल माह के आरम्भ में लंदन से निराशा और दुःख का अथाह सागर लिए लौट आने के बाद ही सुबीर एवं नीलांजना ने एक बड़ी शिफ़्टिंग का मन बना लिया था । सर्वश्रेष्ठ तथा सर्व प्रिय स्थान नीलांजना का गृह नगर था , जो मौसम में , स्वच्छता में तथा संजना और भूषण के अतिरिक्त अन्य कई रिश्तों की अनमोल धरोहर से भरा था अतः दोनो ने ही अन्य परिवार जनों के आग्रह पर यहाँ शिफ़्ट होने का निर्णय लिया ।वे मई में ही यहाँ आए । संजना ने अपने जीवन के लम्बे अमूल्य वर्ष एक प्राइवेट स्कूल को दिए थे तथा अपने लिए स्कूल मैनेजमेंट की दृष्टि में अपने लिए एक सम्माननीय स्थान तो अर्जित किया ही था , पूरे शहर में इन पिछले वर्षों में हर क्षेत्र में , कई आयु वर्ग के उसके छात्र छात्राएँ बिखरे पड़े थे , जो उसे माँ तुल्य समझते थे । नीलांजनाने यह गुण अपनी प्राचार्या माँ में भी देखा था जिसे उसके प्रत्येक स्कूल ने माँ का सम्मान दिया था क्यूँकि उसने अपनी प्रत्येक छात्रा को प्रत्येक स्टाफ़ सदस्य को अपने परिवार का सदस्य ही माना था ।अभी नीलांजना और सुबीर को भी भूषण , संजना प्रीति और सभी बच्चों के स्नेह की आवश्यकता थी ।संजना का ही एक छात्र विजय शुक्ला प्रॉपर्टी डीलिंग में था तथा , सुबीर एवं नीलांजना की पसंद जानकर उनकी पसंद का ही एक फ़्लैट दिखाया , जिसे दोनो ने देखते ही पसंद कर लिया और एडव्हाँस भी दे दिया गया ।
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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