अगला मंदिर मंगलनाथ का था । यह न केवल मध्यप्रदेश न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व में एक मात्र मंदिर है । ऐसा माना जाता है की नाम एवं गोत्र बता कर यहाँ पूजा करवाने से मंगल शांति बनी रहती है । नीलांजना प्रसाद लेकर ऊपर गई सुबीर भी साथ ही थे । पुजारी ने जैसे ही नाम पूछेगा उसने संकल्प का नाम लिया और गोत्र कश्यप बताते हुए पूजा करवाई वहाँ से प्रसाद लेकर बाहर निकले तो सुबीर ने पवित्र धागा वहाँ के स्तम्भ पर कस कर बांध दिया ।अब पुनः उनका रिक्शॉ आगे बढा ।अब उन्हें काल भैरव मंदिर पहुँचना था । नीलांजना कई बार WhatsApp पर काल भैरव की मूर्ति को शराब चढ़ाए जाते और ग्रहण करते देखती रही थी ।ड्राइवर ने कहा कि यदि आप दूसरी ओर उतरें तो फ़ोन कर दें । महांकाल मंदिर की तरह ही मार्ग बेरिकेट्स में बँटा हुआ दूर तक फ़ेला हुआ था । आगे सीढ़ियाँ भी थीं । सीडीयों के निकट के दीप स्तंभ पर चढ़ा युवक दीपों में तेल डाल रहा था । सभी भक्तों के हाथ में प्रसाद का थाल था जिसने शराब की छोटी छोटी बोतल भी थी ।भक्त गण ज़ोर ज़ोर से जयकरा लगा रहे थे । वहाँ बैठी छोटी सी भिकारिन बच्ची ख़ाकी प्लास्टिक की बोतल से उसकी पहुँच तक के व्यक्तियों के पैर पर मार रही थी । लोग नादानी समझ कर इस बात को नज़रंदाज़ कर रहे थे किंतु वहीं बैठी उसकी बड़ी बहन ने क्रोधित होकर उसके मुँह पर ही दो चार तमाचे जड़ दी । इतनी भीड़ भी थी और अनुशासित थी । सभी ने अपनी अपनी पारी आने पर दर्शन किए और नियत मार्ग से नीचे लौटे । नीचे काल भैरव का अभिमंत्रित धागा सुबीर व नीलांजना ने भी बँधवाया ।लौटते समय नीलांजना ने ड्राइवर से उसका नाम पूछा । इसने बताया कि उसका नाम अल्तमश है । सुबीर के पूछने पर उसने बताया कि उसने बैटरी वाला रिक्शा एक लाख अस्सी हज़ार में ख़रीदा है । सुबीर ने उसे परामर्श दिया कि वह कमाई का एक हिस्सा जमा करे जिससे गाड़ी मेंटेनेन्स किया जा सके । उसने वापस लौट कर हरसिद्धि के नीचे वाली सीढ़ियों पर दोनो को उतार दिया । उसे किराया देकर सुबीर व नीलांजना सीढ़ियों की ओर बढ़ चले ।दूसरे दिन सुबीर और नीलांजना ने प्रातः उठते ही घर लौटने का निर्णय लिया। वे सारे मंदिरों के दर्शन कर ही चुके थे अतः वहां रुके रहने का कोई औचित्य नहीं था। यहाँ भी ऑटो वाले ने उन्हें बस निकलती हुई बस में चढ़ा दिया जो मात्र एक घंटे में उन्हें निर्दिष्ट तक ले आई ----
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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