तीन बजे सुबीर ने नीलांजना को उठाया । उन्हें अभी बहुत कुछ देखना था । होटेल के मालिक युवक से उन्होंने पूछा तब उसने कहा की बायीं ओर ऑटो स्टैंड है और बैटरी वाली रिक्शॉ भी खड़ी रहती है , वहीं से भाव करके तय कर लो । सुबीर और नीलांजना इधर गए तो एक बैटरी रिक्शॉ चालकि स्वयं ही आगे आया और बताया कि वह दर्शन कराएगा । पहले पाँच सौ बोला और चार सौ पर बात तय हो गई । सुबीर ने एक स्थान पर रुक कर बिसलेरी की दो बोतलें ख़रीदीं ।वहाँ से शहर के मध्य से गुज़रते हुए रिक्शॉ पिछली बार उज्जैन दौरे में चिंतामणि गणपति के दर्शन सुबीर और नीलांजना ने किए थे अतः इस बार उसे प्राथमिकता में नहिनरखा वैसे भी वह मुख्य उज्जैन में न होकर कुछ किलोमीटर दूरी पर स्थित है । बड़ा गणेश भी परिसर में ही था अतः उन्होंने वहीं उसके दर्शन किए । रिक्शॉ सर्वप्रथम साँदीपनी आश्रम के आया । यह महर्षि साँदीपनी का वही आश्रम है जहां कृष्ण ईवेन सुदामा की शिक्षा हुई थी । यह एकमात्र मंदिर है जहां नंदी खड़े हुए थे । कृष्ण लीलाओं को देखने भगवान शिव पधारे थे दोनो को एक साथ देख कर नंदी सम्मान में खड़े हो गए । वहाँ से दर्शन करने के उपरांत उनका रिक्शॉ गढ़ कालिका मंदिर पहुँचा । नीलांजना को ज्ञात हुआ की 51 शक्तिपीठों में एक हैं । माँ सती के होटों का ऊपरी भाग यहाँ गिरा था ,51 शक्तिपीठों की की पौराणिक गाथा बताती है कि शंकर जी की पत्नी सती के पिता दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था तथा सभी बड़े छोटे देवताओं को निमंत्रित किया था , किंतु शंकर जी को निमंत्रण नही देता था कि वे कंदरा में रहने वाले राख लपेटे सन्यासी वेष धारी हैं । जब सती ने विभिन्न आकाश रथों पर जाते विभिन्न देवताओं को देखा तो उन्हें पता चला कि पिता यज्ञ कर रहे हैं । तो वे जाने को उद्यत हुईं , शिव जी ने बहुत समझाया कि बीमा बुलाए जाना उचित नही है , किंतु वे अपनी ज़िद पर अड़ी रहीं , वहाँ पहुँचने पर , पिता ने विषाक्त शब्दों से अपमानित किया सभी उपहास भी करने लगे , माता सती को यह अपमान सहन नही हुआ और उन्होंने अग्निकुण्ड में कूद पड़ी और आत्महत्या कर ली । उधर जैसे ही शिव जी को ज्ञात हुआ वे क्रोध से भरे हुए यज्ञ स्थान पर पहुँचे और माता के के शव को उठा कर क्रोध में नृत्य करने लगे , सभी देवता उससे घबरा उठे और विष्णु से प्रार्थना करने लगे कि शिव जी को रोकें । तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र चला कर शव के 51 टुकड़े किए जो भिन्न भिन्न स्थानों पर गिरे और वे सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं । प्रसाद ले जाकर नीलांजना ने मंदिर में चढ़ाया , श्रद्धा पूर्वक दर्शन किए परिक्रमा की और वापस दोनो आकर रिक्शे में बैठे ।
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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