कश्मीर एक अमूल्य धरोहर !
जब यह ज्ञात हुआ था कि महर्षि कश्यप की तपोभूमि रही है कश्मीर तथा इसीलिए इसका नाम कश्मीर पड़ा है तब से कई दिनों से कश्मीर जाने की इच्छा मन में कुलबुला रही थी ।
हम चारों कई दिनो से कहीं घूमने का विचार कर ही रहे थे । यह हमारा पहला tour नहीं था , हम चारों पहले भी इसी प्रकार कई दर्शनीय स्थलों की सैर कर आए थे । विभिन्न स्थलों की बात करते करते सभी कश्मीर पर एकमत हो गए । हम सभी एक ही विद्यालय में अध्यापक वर्ग से हैं । चूँकि हम पहले भी जिस tour and travel से संतोषजनक यात्रायें कर के आए थे अतः हमने उसी से वार्तालाप किया तथा परस्पर सहमति से उसे हाँ कह दिया । हम एक ऑक्टोबर को इंदौर से भोपाल और भोपाल से दिल्ली पहुँचे । वहाँ से प्री पैड टैक्सी करके टर्मिनल टू पर पहुँचे । यहाँ से श्रीनगर की फ़्लाइट लेकर श्रीनगर पहुँचे । Airport to Airport के Agreement के अनुसार हमें Airport से ही रिसीव कर के श्रीनगर के अच्छे होटेल में पहुँचाया । hotel अच्छा था तथा उसमें breakfast और dinner सम्मिलित था । हमें गुलमर्ग सोनमर्ग ,पहलगाम तथा श्रीनगर में शंकरचार्य के मंदिर का विहंगम दृश्य था । लगभग ढाई सौ सीढ़ियाँ चढ़ने का पश्चात सामने था एक विशालकाय ज्योतिर्लिंग , जिसमें चंदन और अक्षत से पूजा की हुई थी । निकट ही एक छोटी सी झोपड़ी सी बनी हुई थी , कहा जाता है कि शंकराचार्य ने यहाँ तपस्या की थी । हममे से एक के परिचित होटेल में हमसे मिलने भी आए एवं आग्रह पूर्वक हमें घर आने का निमंत्रण दे गए । पहाड़ी के इर्दगिर्द गोल गोल घूमती टैक्सी हमें उनके घर तक ले गई । उनकी माता जी ने हमारा स्वागत किया , वे अत्यंत ही सुंदर कश्मीरी महिला थीं । उन्होंने पानी लाकर दिया , हमें कहा कि “ हमारे यहाँ चश्मा है “ हम ने आग्रह किया कि हमें चश्मा दिखाइए , वे हमें घर के पीछे ले गए , सुंदर सा स्वच्छ निर्मल जल था , उन्होंने बताया कि आस पास की बस्ती में सभी वहीं से पानी भर कर ले जाते हैं । वहाँ उनके अखरोट के और सेब के पेड़ भी थे ।उसके बाद उनकी माताजी ने कश्मीरी कहवा बनाया , उन्होंने उसमें तोड़ तोड़ कर कुछ अखरोट भी डाले, यह कहवा लाजवाब था,हमने उनकी माताजी से पूछा “ क्या आप कभी इंदौर आईं हैं “ उन्होंने कहा हाँ आई हूँ , हमने पूछा कैसा लगा आपको इंदौर ? वे बोलीं अच्छा है पर हमारे कश्मीर से अच्छा नहीं “चूँकि एक सम्मान नीय केंद्रीय नेता का आगमन भी इसी समय हो रहा था अतः श्रीनगर में बहुत भीड़ भी थी तथा अतिरिक्त सुरक्षा भी थी , हमलोग किंतु जो काफ़ी सारी शॉपिंग करने का प्लान कर के गए थे वह पूरा होता दृष्टिगत नहीं हो रहा था ।
, हमचारों में तीन हिंदू धर्मावलम्बी थे तथा एक हज़रतबल में नमाज़ पढ़ने की उत्कट इच्छा लिए आई थी । यद्यपि टैक्सी वाले ने यह कहकर हतोत्साहित करने की पूरी कोशिश की थी कि मैडम हज़रतबल इधर है और airport दूसरी ओर , आपकी फ़्लाइट मिस हो जाएगी , चूँकि मैं वरिष्ठ थी तथा मेरे ही भरोसे पर बाक़ी तीनो के अभिभावक उन्हें भेजते थे अतः मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकती थी और उसके साथ ही हज़रतबल गई । जिधर औरतों की नमाज़ होती थी वह उधर नमाज़ पढ़ने गई और मैं एक ओर तटस्थ वज्रासन में बैठ गई । उसके अब्बू ने उसे इत्र दिया था जिसे वह मस्जिद में दे आई । उसने बाहर से पूरी सब्ज़ी ख़रीदी और हम दोनो टैक्सी तक लौट आए । Airport पर सही समय पर पहुँचे । चेकिंग बहुत सख़्त थी । चश्मे शाही का जो पानी लाए थे उसे पीकर दिखाने को कहा गया । जब फ़्लाइट दिल्ली में लैंड कर रही थी तो नीचे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था ,मुझे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा था , लगा कि लोग सही कहते हैं दिल्ली में पॉल्युशन बहुत है , किंतु नीचे आने पर पता चला मुसलाधार बारिश हो रही थी ।हमने भावताव कर एक टैक्सी ली , हमारे पास पर्याप्त समय था । हमलोग पहले सरोजिनी नगर गए यह सोच कर कि छतरियाँ ख़रीद लें , एक ही दुकान पर एक ही छतरी थी 200 रुपए की , दुकानदार बता रहा था कि मैडम कोई बिक्री नहीं हुई है आज देखो इतना ही कमाया है , उसने अपनी जेब से कुछ मुड़े तुडे नोट निकाल कर दिखाए । हमने छतरी नहीं ली । हमने छोले कुलचे तथा आलू टिक्की खाई ।वहाँ से हम सभी लाजपतनगर गए सभी ने घर के सदस्यों के लिए कुछ कुछ ख़रीदा । एक को क्रिकेट का बैट भी ख़रीदना था सो वह भी स्पोर्ट्स की दुकान पर मिल गया । स्टेशन के निकट पूरा मार्ग ट्रेफ़िक से भरा था ,कई लोग जिनकी ट्रेन का समय हो चुका था, काफ़ी दूरी पर उतार दिए गए तथा वे लगेज लेकर उस भारी वर्षा में पैदल ही स्टेशन जा रहे थे । हमारा टैक्सी वाला भी हमें कहने लगा आप भी पैदल चले जाओ यहाँ से किंतु हमने उससे कहा कि अभी हमारी ट्रेन को समय है हमें स्टेशन के गेट तक पहुँचा दो । काफ़ी देर रेंगती हुई टैक्सी ने हमें स्टेशन पहुँचा दिया । हमलोग पूरी तरह भींगे हुए थे । दस दस रुपए जमा कर हमने स्टेशन पर वेटिंग रूम में कपड़े चेंज किए । वहीं चावल छोले खाए । बारिश अब भी हो रही थी , ट्रेन आई , बहुत भीड़ थी , धुआँधार बारिश के कारण हमारे कम्पार्ट्मेंट का नम्बर भी नहीं दिख रहा था , पहले तो हममे से दो एक कम्पार्ट्मेंट में चढ़ गई कि भीतर ही भीतर अपने कम्पार्ट्मेंट तक पहुँच जाएँगे किंतु फिर यह सोच कर उतर गए कि यह व्यावहारिक नहीं है । हमारा कम्पार्ट्मेंट आउटर पर था । जैसे तैसे हम अपने कम्पार्ट्मेंट तक पहुँचे । फिर से भींग गए थे । स्टॉल पर चाय पी , चाय बहुत अच्छी है , अपने यहाँ जैसी , स्टॉल वाला बोला “ M.P. से ? हमें आश्चर्य हुआ , आपको कैसे पता चला ? मैंने पूछा तो बोला “ आपकी बोली से “ दूसरे दिन सुबह इंदौर पहुँचते ही लगा कि घर पहुँच गए है “ वाक़ई इंदौर जैसा कोई शहर भारत में नहीं है , स्वच्छता में छठी बार विजय श्री पाया शहर , लोग इतने अपने से हैं कि नया व्यक्ति कहीं का रास्ता पूछे तो इंदोरी उसे वहाँ तक पहुँचा आए , मधुर भाषी मददगार लोग और क्राइम रेट न के बराबर .इस प्रकार हमारी यह यात्रा अविस्मरणीय रही , वह दिल्ली जहां गिने चुने दिनो में छींटे बरसाने वाली बारिश होती है वहाँ हमने निरंतर चार घंटों तक मुसलाधार बारिश भी देख ली !! सरल हृदय लोगों वाला इतने सरल कि नया व्यक्ति रास्ता पूछे तो उसे घर तक पहुँचा आए । सबके लिए मददगार लोग , मधुरभाषी लोग और Crime rate न के बराबर, जो यहाँ नौकरी करने आए ,यहीं बसने का दृढ़ निश्चय कर ले , जो बेटियाँ यहाँ से विदा होकर दूसरे शहर जायें उन्हें अपना यह शहर बार बार अपनी ओर खींचे ।और जो यहाँ के निवासी हैं वे अराउंड द वर्ल्ड घूम कर आयें तब भी यही कहें इंदौर से अच्छा कोई शहर नहीं !
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