ज़ीवन के उतरार्द्ध में
मैंने अपने एक मित्र से पूछा जो 60 पार कर चुकी है और 70 की ओर बढ़ रही है कि वह अपने अंदर किस तरह का बदलाव महसूस कर रही है
उसने मुझे निम्नलिखित बहुत ही रोचक पंक्तियाँ भेजीं जिसे मैं आप सबके साथ साझा करना चाहूँगी …..
1) अपने माता-पिता ,भाई बहिन, जीवन साथी,बच्चों और दोस्तों से प्यार करने के बाद,
अब मैं प्यार करने लगी हूँ
खुद से ।
2) मुझे अब यह एहसास हुआ कि दुनिया सिर्फ़ मेरे कंधों पर ही नहीं टिकी है ।
३) मैंने बुजुर्गों को यह बताना बंद कर दिया कि यह बात वे पहले भी कई बार बता चुके हैं ।
आख़िरकार, कहानी बनती ही यादों से है और वे यादों के गलियारों में घूमना चाहते हैं तो क्यों नहीं !
४ ) मैंने लोगों को सुधारने की कोशिश न करना सीख लिया है तब भी जब मैं जानती हूँ कि वे गलत हैं।आख़िरकार, सबको परफ़ेक्ट बनाने का दायित्व मुझ पर तो नहीं है । ख़ुद की शांति इससे भी अधिक कीमती है ।
५ ) मैने अपनी साड़ी की सलवटों या चुन्नी के रंग पर परेशान होना छोड़ दिया है ।आख़िरकार कपड़ों से ज़्यादा आपका व्यक्तित्व बोलता है ।
६ )मैं उन लोगों से दूर चला जाती हूं। जो मेरी कद्र नहीं करते.उन्हें शायद मेरी क़द्र न हो लेकिन मुझे अपनी कद्र करना आ गया है ।
७ ) मैं शांत रहती हूं जब कोई मुझसे गंदा राजनीतिक खेल खेलकर आगे निकलना चाहता है । मुझे चूहा दौड़ का हिस्सा नहीं बनना है क्योंकि मैं चूहा नहीं हूँ और न ही मुझे बिना मतलब दौड़ना है ।
८ ) चोट पहुँचने पर मेरी भावनाओं के लिये शर्मिन्दा न होना भी सीख लिया है क्योंकि आख़िरकार, ये मेरी भावनाएँ है जो मुझे इंसान बनाती हैं ।
९ )मैंने सीखा है कि रिश्तों को निभाने के लिए यह बेहतर है कि अहंकार को त्यागा जाए लेकिन बात जब आत्मसम्मान या चरित्र पर बेबुनियाद आपेक्षों की हो तो सीमा रेखा खींचना अनिवार्य है ।
१० ) मैंने हर एक दिन को जीना सीख लिया है मानो यह दिन आखिरी हो.
क्या पता यह आखिरी हो भी सकता है।
११ )मैं वही कर रही हूँ जो मुझे ख़ुशी देता है आख़िरकार मेरी ख़ुशी मेरी ज़िम्मेदारी है ।
हम किसी भी अवस्था और उम्र में इसका अभ्यास क्यों नहीं कर सकते.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें