मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शनिवार, 23 मार्च 2024

Ayodhya Dham !! Jai Shri Ram !!

। अयोध्या वाला ट्रिप तो बहुत ही hectic रहा , हमें  उस दिन ही ध्यान गया कि ट्रेन पुरानी दिल्ली से है , यहाँ से बैटरी वाली रिक्शॉ में मेन रोड गए , दो रिक्शे वालों ने मना कर दिया तीसरा 300 रुपए में जाने को तैयार हुआ । हम घर से साढ़े पाँच में निकले थे और साढ़े सात में स्टेशन पहुँचे , अत्यधिक भीड़ भरे रास्तों से गुज़र कर , ग़नीमत ये थी कि एक बैग एर एक backpack था बस । प्लैट्फ़ॉर्म पर B 2 के सामने जा खड़े हुए और थोड़ी देर में ट्रेन लग गई , हम अपनी सीट पर जा बैठे । ट्रेन आने वाली और जाने वाली दोनो ही कैफ़ियत express थी और  अधिकतर लोग आज़मगढ़ जाने वाले थे । अयोध्या में ट्रेन का स्टॉपेज मात्र तीन मिनिट था । जब हम उतरे तो कई रिक्शा वालों को तो कालेराम मंदिर ही पता नहीं था ,गूगल में देखा था दो किलोमीटर ही बता रहा था कोई बैटरी रिक्शा ढाई सौ माँग रहा था । तभी एक समझदार रिक्शे वाले ने समझाया कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए बाहर के वाहन बाहर ही चलते हैं और भीतर के भीतर । उसने इशारे से बताया यहाँ से सीधे चले जाइए सामने ही राम मंदिर है वहीं से मिल जाएगा , और कुछ दो तीन सौ कदम पर ही राम मंदिर दिख गया । रिक्शा वाला बोला हमसे बात कराओ उनकी जहाँ आपको जाना है , तब मैंने व्यवस्थापक को फ़ोन लगाया उसने रिक्शा वाले को समझाया कि रामकी पैड़ी ( शरयु घाट ) ले आओ । उस रिक्शे वाले ने सौ रुपए लिए और हमें पहुँचा दिया कालेराम मंदिर में उस समय जो पुजारी बैठे थे उनसे मैंने राघवेंद्र के बारे में पूछा किंतु उसने ठीक से उत्तर नहीं दिया । तभी रामसेवक नाम का एक व्यक्ति आया और उसने कहा आपका कमरा खोल दिया है । कमरा ठीक ठाक था बाथरूम और toilet भी ठीक थे । रामसेवक दो चाय दे गया फिर हमारे माँगने पर दो चाय बाहर से ख़रीद कर ले आया । उसने बताया कि गीज़र दूसरी ओर लगा है और आपको बाल्टी ले जाकर गरम पानी लेना होगा । सबसे पहले मैं पानी ले मैं नहा ली , मैंने अपने भोलेनाथ जी को भी एक कोनाडे में स्थापित कर लिया और पूजा कर ली । साढ़े नौ बजे हम दोनो तैयार होकर निकल पड़े । कमरे में हमने अपना हैरीसन का ताला लगाया । हम लोग शरयु घाट पर आ गए , दीपक की बात याद आ गई कि शरयु के छींटे मार लेना , जाने राघवेंद्र ने बताया कि घाट से ही नदी के साथ साथ चलने पर आपको हनुमान गढ़ी के लिए रिक्शा मिल जाएगा । घाट के इस ओर नीचे उतरने की जो सीढ़ियाँ हैं वे डेढ़ से पौने दो फ़ीट ऊँची हैं बाबा तो उतर गए , मुझे भी उन्होंने उतरने में मदद की । अपने ऊपर पानी के छींटे मार कर लौटे तो तो तीन सीढ़ियाँ तो मई जैसे तैसे चढ़ गई किंतु अंतिम वाली और ऊँची थी और साड़ी पहन कर उसे चढ़ना एक दुष्कर कार्य था , इन्होने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था और पूरी ताक़त लगा कर मैं तीन चार प्रयासों के बाद चढ़ पाई । बाद में लौटते हुए देखा कि सामने वाले तट पर अत्यंत ही सुगम मार्ग और छोटी सीढ़ियाँ हैं । शरयु का पानी इतना है कि सभी स्त्री पुरुष बीच  में भी खड़े होकर नहा रहे थे । हम वहाँ से नदी किनारे किनारे चले और हमें रिक्शा मिल गया ।यह चार सवारी पीछे बिठाने वाला बैटरी रिक्शा था । रिक्शे में एक और दम्पति बैठे थे वे संयोग वश वे दिल्ली के ही थे । चूँकि हनुमान गढ़ी काफ़ी घूम कर जाना होता है अतः मार्ग में परस्पर कुछ बातें भी हुईं । उनके दो डॉक्टर बेटे हैं और वे स्वयं भी डॉक्टर हैं ।पत्नी ने बताया की वृंदावन में उनका मोबाइल बंदर ने छीना और इस झपटमारी में वे गिर गई थीं और उनकी पैर की हड्डी टूट गई थी ।बाबा ने कहा वहाँ के बंदर बहुत नटखट हैं , वे चश्मा छीन कर लगा लेते हैं और कोल्ड ड्रिंक या चिप्स के पैकेट देने पर लौटाते हैं । इस कार्य में बिचौलिये का रोल कुछ बारह से पंद्रह वर्षीय बच्चे निभाते हैं , यानी वो ट्रेंड बंदर उनका कहना इसी शर्त पर मानते हैं कि उन्हें कुछ खाने पीने को मिले और बच्चों को भी शायद दुकानदार से कुछ मिलता ही होगा वरना वे मुफ़्त की सेवा क्यूँ करते इन्होने कहा अयोध्या के बंदर अत्यंत शरीफ़ हैं मानो राम जी की सेना हो । और पूरी अयोध्या में हर जगह बंदर ही बंदर दिखते हैं । हम हनुमान गढ़ी पहुँच गए थे वे दम्पति उतर कर छोले भटूरे के स्टॉल में चले गए और हम हनुमान गढ़ी की ओर ।यह एक छोटी पहाड़ी की तरह ऊँचाई पर स्थित मंदिर है । काफ़ी फ़ोर तक चढ़ाई नुमा रास्ता है और उसके आगे चौड़ाई में सीढ़ियाँ स्टील के रेलिंग लगा कर बनाई गई है । भीड़ का जत्था का जत्था ऊपर चढ़ रहा था , इन्होने  ने एक स्त्री से पूछा कितना टाइम लगा ? बोली एक घंटे में दर्शन हो जाएँगे । हमने जिस दुकान से प्रसाद लिया चप्पलें वहीं उतार दिन और भीड़ के रेले के साथ आगे बढ़ने लगे । माइक पर निरंतर घोषणा की जा रही थी कि शांति से आगे बढ़े किसी भी प्रकार की धक्का मुक्की ना करें । अब हम दोनो भी रेलिंग वाली सीढ़ियों तक आ गए थे पौना घंटा बीट चुका था । मैंने पीछे नीचे दृष्टि डाली तो होश उड़ गए , वहाँ भी सैंकड़ों का जत्था था , यानी आगे भी भीड़ और पीछे भी भीड़ । एक बच्चे को चक्कर आ गया था , उसे उसके पिता ने रेलिंग से साइड में निकाला जहाँ पुलिसकर्मी ने उसे पानी लाकर दिया था । मैंने बाबा से कहा कि क्या हम वापस चलें ? उन्होंने कहा नहीं , तुम क्या समझती हो यहाँ से वापस हुआ जा सकता है । मुझे एक दुर्विचार सा आ रहा था यदि यहाँ कोई जान बूझ कर भगदड़ मचा दे तो सैंकड़ों लोग कुचल कर ही मर जाएँगे ।किंतु सुविचार ने बजरंग बली को स्मरण किया और यह कि निश्चित रूप से इसका रिनोवेशन होगा । अब तक उनकी ऊपर चढ़ने जी बारी आ गई थी दो पंडित दनादन लोगों के हाथों से प्रसाद लेकर चढ़ा कर लौटाते जा रहे थे । इनके हाथ  से भी डिब्बा के लिया और लौटा भी दिया । बाहर निकलने का मार्ग दूसरा था और मेरा अन्दाज़ सही था रेनोवेशन जारी जो लोग भी हनुमानगढ़ी से दर्शन कर उतरे थे वे राम मंदिर की ओर जा रहे थे हम भी उसी भीड़ में थे ।हमने एक छोटी सी पानी की बोतल मार्ग में ख़रीदी और चल पड़े ।अब तक साढ़े बारह से ज़्यादा का समय हो चुका था . 


यहाँ अपेक्षाकृत कम भीड़ दिख रही थी । चूँकि फ़ोन तो हम धर्मशाला में ही छोड़ आए थे और हमारे हाथ में बस हनुमानगढ़ी का प्रसाद का डिब्बा और छोटी सी पानी की बोतल थी । सिक्योरिटी वाले ने बताया कि आगे सभी को अपना अपना सामान रखने के लिए लॉकर मिलेंगे । कुछ और आगे बढ़े तो लगा कि चप्पल भी लॉकर में रखनी होगी तो रखने और निकालने में काफ़ी समय व्यर्थ होगा । वहीं खड़े सिक्योरिटी वाले से जब हमने पूछा तो उसने कहा सामने ही बेंच के नीचे उतार दो । हमने उससे पूछा कि लौटने का मार्ग तो दूसरा होगा ? उसने कहा कि आप उस तरफ़ के गार्ड से कह दीजिएगा कि आपकी चप्पलें इधर रखीं हैं तब वह आपको इधर आने देगा । अब तक धूप चटाखेदार हो चुकी थी ।चप्पल उतारते ही यह अनुभव हुआ यद्यपि रोड के दो ओर कार्पेट बिछा हुआ था किंतु सब जगह नहीं था । धूप की तेज़ी से पैर में चटके लग रहे थे , इन्होंने कहा “ जहाँ डामर पिघला है वहाँ पैर मत रखना वरना पैर में चेंट जाएगा , इसके बाद मेट्रो की तरह के गेट से निकल कर आगे बढ़े “ काफ़ी चलने के बाद कहा गया कि लेडीज़ की अलग और जेंट्स की अलग क्यू होगी । अब हम दोनो अलग अलग क्यू में थे । आगे चार सिक्योरिटी चेक थे , लेडीज़ की  फटाफट चेकिंग हुई  और वे आगे बढ गई किंतु जेंट्स को रोक दिया गया । अब सभी लेडीज़ वहीं खड़ी हो गई अपने अपने पतियों की प्रतीक्षा में । पुलिसकर्मी ने उन्हें वहाँ से हट कर आगे जाने को कहा । उसने यह भी बताया कि अभी पट बंद हो गए हैं और एक बजे खुलेंगे । सभी जेंट्स क्यू में ही जय श्री राम के नारे लगा रहे थे ज़ोर ज़ोर से थोड़ी थोड़ी देर में । आगे कुर्सियाँ बिछीं थीं किंतु धूप तेज थी । सभी महिलायें कुर्सियों पर जा बैठीं , मैं भी । एक बज कर बीस मिनिट पर सभी जेंट्स अंदर आए और अब सभी मंदिर की ओर चले , यह काम भीड़ का मार्ग प्रतीत हुआ । सभी लोग मंदिर की पहली सीढ़ी को छूकर मस्तक पर हाथ ले जा रहे थे सबका चिर प्रतीक्षित स्वप्न पूरा हुआ था , रामलला बेचारे पाँच सौ वर्षों से बेघर थे , टेंट में भी रहे अब उन्हें एक अच्छा सा स्थान मिला था और उनके भक्त मगन होकर जय श्री राम जय श्री राम कर रहे थे । यहाँ अंदर प्रसाद वग़ैरह चढ़ाना allowed नहीं था , मेरे पति को सिक्योरिटी चेक में पानी की बोतल भी फेंक देनी पड़ी और हनुमान गढ़ी का प्रसाद भी आस पास खड़े लोगों में बाँट देना पडा । अंदर क्यू में बढ़ते हुए ही रामलला के दर्शन हुए , जैसे महांकाल के उज्जैन में होते हैं , अच्छा लगा , हम रामलला को देख रहे थे और वो हमें देख रहे थे । उस त्रिलोक नाथ से सभी अपने अपने प्रियजनों की सुरक्षा स्वास्थ्य और सम्पन्नता की प्रार्थना कर रहे थे ,रामलला आश्वस्त कर रहे थे , कह रहे थे सब ठीक होगा । बाहर निकलने तक सवा दो बज गए थे । lockers के पास लोगों की भीड़ थी हम दोनो ने बाहर जाकर सुरक्षा कर्मियों से प्रवेश मार्ग की ओर जाने की अनुमति माँगी कि हमारी चप्पलें उस ओर हैं उसने सहर्ष ही जाने दिया । वहाँ एक बेंच के नीचे कई चप्पल जूते पड़े थे , हमारे नहीं थे । धूप चटख थी और चप्पलें दिख नहीं रही थीं कुछ महीनों पूर्व गोकुल में लंगर के बाहर से मेरे जूते ग़ायब हो गए थे वह देख कर मैं अत्यंत हर्षित हुई थी कि वो जूते काफ़ी पुराने हो गए थे किंतु comfortable होने के कारण मैं उन्हें छोड़ती ही न थी । अब यहाँ पैरों में चटके लग रहे थे , अचानक ही मुझे दिखीं दोनो की चप्पलें । वास्तव में हमने एक अलग बेंच के नीचे चप्पलें रखीं थीं । चप्पलें भी एक दम गर्मा गर्म थीं । वहाँ से निकले तो एक दो लोगों से भोजन कहाँ अच्छा मिलेगा पूछने पर बालाजी का नाम बताया , ऊपर ही बेसीन था ,हाथ धोकर नीचे उतरे , सौभाग्यवश एक टेबल पर तीन सीट ख़ाली हुई थी , 120 रुपए प्रति थाली की दो थालियों का ऑर्डर दिया , सामने की ख़ाली सीट पर भी एक सज्जन आ कर बैठे ।हम सुबह से भूखे भी थे और प्यासे भी पहले किनले की वॉटर बॉटल से घूँट घूँट कर पानी पीया फिर भोजन की ओर हाथ बढ़ाया , दो सब्ज़ी दाल चावल और दो तंदूरी रोटियाँ थी ।

सामने वाली सीट पर एक बंगाली सज्जन भी हमारे साथ ही आ बैठे एक व्यक्ति वहाँ पहले से भोजन कर रहा था ।बंगाली सज्जन जो दिल्ली के निवासी थे और कोलकाता घूमने गए थे उन्हें direct टिकिट उपलब्ध नहीं हुआ तो वे पहले काशी घूमे और अब अयोध्या आ गए और इसी प्रकार टुकड़ों में यात्रा करते हुए दिल्ली पहुँचना चाहते थे ।वहाँ से भोजन करके हमदोनो भी अपने होटेल में जा पहुँचे । अत्यधिक थकान थी । बिस्तर से हिलने तक की इच्छा नहीं थी

मेरे पति कुछ खाने का सामान बाज़ार से ले आए और वही खा कर सो गए । सुबह जल्दी उठ गए और बाहर जाकर ही एक छोटे से टी स्टॉल पर चाय पीकर आ गए । जाते हुए चने और गुड जो दिल्ली से ले आई थी बंदरों के लिए एक अहाते में रख दिया । कमरे पर लौट कर नहा धो कर तैयार हो गए ।अब वे घूमते हुए शरयु तट पर जा पहुँचे । वहाँ लोग स्नान कर रहे थे शरयु का स्वच्छ जल सबको आकर्षित कर रहा था । वहाँ से वे दोनों लता मंगेशकर चौक पर गए ,वहाँ बड़ी सी वीणा बनाई गई है । वहाँ एक बड़ी सी हनुमान की मूर्ति थी उनके एक काँधे राम थे किंतु दूसरे काँधे पर लक्ष्मण नहीं थे , मुझे आश्चर्य हुआ । वहाँ एक स्थान पर कुछ स्टील के बढ़िया सीट बिछे थे , जिन पर कुछ पुलिसकर्मी बैठे थे , हम दोनो भी वहीं जाकर बैठे । मैंने हनुमान के दूसरे काँधे से लक्ष्मण के न होने के बारे में एक पुलिसकर्मी से प्रश्न पूछा किंतु संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ । वहाँ से ब्राह्मण भोजनालय में भोजन कर के प्रसाद ख़रीदते हुए वे लौट आए । शाम पाँच बजे उन्होंने कालेराम मंदिर में अभिमंत्रित सुरक्षा सूत्र बँधवाया और एक ऑटो से स्टेशन जा पहुँचे । स्टेशन अत्यंत ही सुंदर बना हुआ है । दोनो ओर मंदिर के शिखर की डिज़ाइन बनी हुई है । वहाँ से नीचे उतरकर वे प्लैट्फ़ॉर्म पर जा पहुँचे । थोड़ी देर में ट्रेन आई और वे अपनी अपनी बर्थ पर जा बैठे । दूसरे दिन प्रातः साथ बजे वे दिल्ली लौट आए । उन्हें गर्व था जब लोग भीड़ से डर रहे थे तब वे रामलला के दर्शन भी कर आए थे ! जय श्री राम

1 टिप्पणी:

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