महर्षि कश्यप की एक पत्नी विनिता को दो पुत्र हुए -गरुड़ और अरूण!
गरुड़ श्रीविष्णु के वाहन बने तो अरूण सूर्य देव की रथ की सारथी!
इसीलिए सूर्योदय से पहले की लाली को अरूणोदय कहा जाता है। इन्हीं अरुण के पुत्र थे -सम्पाति और जटायु!
गरूड़ को श्री विष्णु ने भवसागर से उद्धार के लिए जो बताया वहीं गरूड़ पुराण है जिसे गरुड़ ने अपने पिता कश्यप को, कश्यप ने वेदव्यास को और वेदव्यास से संसार ने जाना।
इस पुराण में मरते समय, मरने के तुरंत बाद मनुष्य की क्या गति होती है, किस कर्मों के फलस्वरूप किस योनि में जन्म होगी।
श्राद्ध के दौरान गरुड़ पुराण का पाठ होता है मृत्यात्मा के सद्गति के लिए।
#भगवान शिव को अर्पित नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए या नही : ->
सौवर्णे नवरत्नखण्ड रचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं पंचविधं पयोदधिहरयुतं रम्भाफलं पानकम्।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु।। (शिवमानसपूजा)
अर्थात् - मैंने नवीन रत्नजड़ित सोने के बर्तनों में घीयुक्त खीर, दूध, दही के साथ पांच प्रकार के व्यंजन (पकवान), केले के फल, शर्बत, अनेक तरह के शाक, कर्पूर की सुगन्ध वाला स्वच्छ और मीठा जल और ताम्बूल, ये सब मन से ही बनाकर आपको अर्पित किया है। भगवन्! आप इसे स्वीकार कीजिए।
क्या भगवान शिव को अर्पित किया गया नैवेद्य (प्रसाद) ग्रहण करना चाहिए?
सृष्टि के आरम्भ से ही समस्त देवता, ऋषि-मुनि, असुर, मनुष्य विभिन्न ज्योतिर्लिंगों, स्वयम्भूलिंगों, मणिमय, रत्नमय, धातुमय और पार्थिव आदि लिंगों की उपासना करते आए हैं। अन्य देवताओं की तरह शिवपूजा में भी नैवेद्य निवेदित किया जाता है। अन्य देवताओं का प्रसाद तो लोग बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करते हैं किन्तु शिवजी के प्रसाद के सम्बन्ध में लोगों के मन में यह दुविधा रहती है कि भगवान शिव को अर्पित किया गया प्रसाद ग्रहण करना चाहिए या नहीं। इसके पीछे कारण यह है कि शिवलिंग पर चढ़े हुए प्रसाद पर चण्ड का अधिकार होता है।
भगवान शिव के मुख से निकले हैं चण्ड
गणों के स्वामी चण्ड भगवान शिवजी के मुख से प्रकट हुए हैं। ये सदैव शिवजी की आराधना में लीन रहते हैं और भूत-प्रेत, पिशाच आदि के स्वामी हैं। चण्ड का भाग ग्रहण करना यानी भूत-प्रेतों का अंश खाना माना जाता है। इसलिए लोगों के मन में डर रहता है कि कहीं शिवजी का प्रसाद खाने से उनके जीवन में कोई विपत्ति न जाए।
शिव नैवेद्य ग्राह्य और अग्राह्य :-
शिवपुराण की विद्येश्वरसंहिता के २२वें अध्याय में इसके सम्बन्ध में स्पष्ट कहा गया है—
चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न मानवै:।
चण्डाधिकारो नो यत्र भोक्तव्यं तच्च भक्तित:।। (२२।१६)
अर्थात् - जहां चण्ड का अधिकार हो, वहां शिवलिंग के लिए अर्पित नैवेद्य मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। जहां चण्ड का अधिकार नहीं है, वहां का शिव-नैवेद्य मनुष्यों को ग्रहण करना चाहिए।
किन शिवलिंगों के नैवेद्य में चण्ड का अधिकार नहीं है?
इन लिंगों के प्रसाद में चण्ड का अधिकार नहीं है, अत: ग्रहण करने योग्य है -
#ज्योतिर्लिंग:- बारह ज्योतिर्लिंगों (सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकाल, ओंकार में परमेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमशंकर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोमतीतट में त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दारुकावन में नागेश्वर, सेतुबन्ध में रामेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर) का नैवेद्य ग्रहण करने से सभी पाप भस्म हो जाते हैं।
शिवपुराण की विद्येश्वरसंहिता में कहा गया है कि काशी विश्वनाथ के स्नानजल का तीन बार आचमन करने से शारीरिक, वाचिक व मानसिक तीनों पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
#स्वयम्भूलिंग :- जो लिंग भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं ही प्रकट हुए हैं, उनका नैवेद्य ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है।
#सिद्धलिंग :- जिन लिंगों की उपासना से किसी ने सिद्धि प्राप्त की है या जो सिद्धों द्वारा प्रतिष्ठित हैं, जैसे :- काशी में #शुक्रेश्वर, #वृद्धकालेश्वर, #सोमेश्वर आदि लिंग देवता-सिद्ध-महात्माओं द्वारा प्रतिष्ठित और पूजित हैं, उन पर चण्ड का अधिकार नहीं है, अत: उनका नैवेद्य सभी के लिए ग्रहण करने योग्य है।
#बाणलिंग (नर्मदेश्वर) :- बाणलिंग पर चढ़ाया गया सभी कुछ जल, बेलपत्र, फूल, नैवेद्य प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए।
जिस स्थान पर (गण्डकी नदी) शालग्राम की उत्पत्ति होती है, वहां के उत्पन्न शिवलिंग, #पारदलिंग, #पाषाणलिंग, #रजतलिंग, #स्वर्णलिंग, केसर के बने लिंग, #स्फटिकलिंग और #रत्नलिंग । इन सब शिवलिंगों के लिए समर्पित नैवेद्य को ग्रहण करने से चान्द्रायण व्रत के समान फल प्राप्त होता है।
#शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव की मूर्तियों में चण्ड का अधिकार नहीं है, अत: इनका प्रसाद लिया जा सकता है—
‘प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोऽधिकृतो भवेत्।।
जिस मनुष्य ने शिव-मन्त्र की #दीक्षा ली है, वे सब शिवलिंगों का नैवेद्य ग्रहण कर सकता है। उस शिवभक्त के लिए यह नैवेद्य ‘महाप्रसाद’ है। जिन्होंने अन्य देवता की दीक्षा ली है और भगवान शिव में भी प्रीति है, वे ऊपर बताए गए सब शिवलिंगों का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
शिव-नैवेद्य कब नहीं ग्रहण करना चाहिए
#शिवलिंग के ऊपर जो भी वस्तु चढ़ाई जाती है, वह ग्रहण नहीं की जाती है। जो वस्तु शिवलिंग से स्पर्श नहीं हुई है, अलग रखकर शिवजी को निवेदित की है, वह अत्यन्त पवित्र और ग्रहण करने योग्य है।
शिव-नैवेद्य की महिमा
जिस घर में भगवान शिव को नैवेद्य लगाया जाता है या कहीं और से शिव-नैवेद्य प्रसाद रूप में आ जाता है वह घर पवित्र हो जाता है। आए हुए शिव-नैवेद्य को प्रसन्नता के साथ भगवान शिव का स्मरण करते हुए मस्तक झुका कर ग्रहण करना चाहिए।
आए हुए नैवेद्य को ‘दूसरे समय में ग्रहण करुंगा’, ऐसा सोचकर व्यक्ति उसे ग्रहण नहीं करता है, वह पाप का भागी होता है।
जिसे शिव-नैवेद्य को देखकर खाने की इच्छा नहीं होती, वह भी पाप का भागी होता है।
#शिवभक्तों को शिव-नैवेद्य अवश्य ग्रहण करना चाहिए क्योंकि शिव-नैवेद्य को देखने मात्र से ही सभी पाप दूर हो जाते है, ग्रहण करने से करोड़ों पुण्य मनुष्य को अपने-आप प्राप्त हो जाते हैं।
#शिव-नैवेद्य ग्रहण करने से मनुष्य को हजारों यज्ञों का फल और शिव सायुज्य की प्राप्ति होती है।
#शिव-नैवेद्य को श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने व स्नानजल को तीन बार पीने से मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।
मनुष्य को इस भावना का कि भगवान शिव का नैवेद्य अग्राह्य है, मन से निकाल देना चाहिए क्योंकि कर्पूरगौरं करुणावतारम् शिव तो सदैव ही कल्याण करने वाले हैं। जो ‘शिव’ का केवल नाम ही लेते है, उनके घर में भी सब मंगल होते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें