नवरात्रि के आरंभ में क्यों बोए जाते हैं जौ ?
नवरात्र में कलश के सामने गेहूं और जौ को मिट्टी के पात्र में बोया जाता है और इसका पूजन भी किया जाता है। ह नवरात्र में जौ बोने की परंपरा सदियों पुरानी है।
भारतीय सनातन संस्कृति में पर्व और उनको मनाए जाने का विधान शास्त्रों में व्यवस्थित किया गया है। इसमें धार्मिक परंपराओं के साथ ही वैज्ञानिक रहस्य भी छुपे हुए हैं। इन्हीं रहस्यों में यह प्रश्न सामने आता है कि नवरात्र में जौ क्यों बोए जाते हैं?
तैत्तिरीय उपनिषद में अन्न को ईश्वर कहा गया है -" अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्। "
वहां अन्न की निंदा व उसके तिरस्कार के लिए निषेध किया गया है-" अन्नं न निन्द्यात् तद् व्रतम्। "
ऋग्वेद में बहुत से अन्नों का वर्णन है, जिसमें यव अर्थात जौ की गणना भी हुई है। मीमांसा का एक श्लोक जौ की महत्ता बताता है कि वसंत ऋतु में सभी
फसलों के पत्ते झड़ने लगते हैं पर मद शक्ति से भरे हुए जौ के पौधे दानों से भरे कणिश (बालियां) के साथ खड़े रहते हैं। संस्कृत भाषा का यव शब्द ही जव उच्चरित होते हुए जौ बन गया। जौ धरती को उपजाऊ बनाने का सबसे अच्छा साधन या उदाहरण है।
सृष्टि का पहला अनाज जौ
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नवरात्र दो ऋतुओं के संधि काल का नाम है। चैत्रीय नवरात्र सर्दी व गर्मी तथा आश्विन नवरात्र गर्मी और सर्दी के संधिकाल हैं। दोनों ही संधिकाल में रबी व खरीफ की फसल तैयार होती है। इसी कारण भूमि की गुणवत्ता को जांचने के लिए जौ उगाकर देखा जाता है कि आने वाली फसल कैसी होगी? यदि सभी अनाजों को एक साथ भूमि में उगाया जाए तो सबसे पहले जौ ही पृथ्वी से बाहर निकलता है, तात्पर्य है कि सबसे पहले जौ ही अंकुरित होगा।
क्यों बोए जाते हैं जौ ?
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पौराणिक मान्यताओं में जौ को अन्नपूर्णा का स्वरूप माना गया है। ऋषियों को सभी धान्यों में जौ सर्वाधिक प्रिय है। इसी कारण ऋषि तर्पण जौ से किया जाता है। पुराणों में कथा है कि जब जगतपिता ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया, तो वनस्पतियों के बीच उगने वाली पहली फसल जौ ही थी। इसी से जौ को पूर्ण सस्य यानी पूरी फसल भी कहा जाता है। यही कारण है कि नवरात्र में भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जौ उगाए जाते हैं। सम्मान में किसी को सस्य देना अर्थात नवधान्य देना शुभ व कल्याणकारी माना गया है। नवरात्र उपासना में जौ उगाने का शास्त्रीय विधान है, जिससे सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है। जौ को देवकार्य, पितृकार्य व सामाजिक कार्यों में अच्छा माना जाता है। वैदिक काल में खाने के लिए बनने वाली यवागू (लापसी) से लेकर अभी की राबड़ी के निर्माण में जौ का प्रयोग ही पुष्टिकर व संपोषक माना गया है।
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