अलग अलग ये सारे दिखते
सारे लेकिन एक से होते
दुबले हों या हों वो मोटे
होते भीतर से हट्टे कट्टे
एक भी नहीं है इनमे सच्चा
सारे के सारे हैं खोटे
कुर्सी पर जब जब ये बैठे
सब जनता को चूना लगाते
चुनाव से पहले हरिश्चंद्र तो
चुनाव बाद धृतराष्ट्र ये अंधे
भूखे हैं बरसों के हैं सारे
नोचे खसोटें और देश को लूटें
बस लफ्फाजी ही लफ्फाजी
सारे वादे ही निकले झूठे
क़र्ज़ माफी के दाने डाल के
इतराते से घूम रहे हैं सारे
ज्यादा गरीब किसान को इन्होने
मूर्ख बना कर वोट झींटे
शर्म बेच खाई है सबने
देश सदा से देखो ये बेचे !!
सारे लेकिन एक से होते
दुबले हों या हों वो मोटे
होते भीतर से हट्टे कट्टे
एक भी नहीं है इनमे सच्चा
सारे के सारे हैं खोटे
कुर्सी पर जब जब ये बैठे
सब जनता को चूना लगाते
चुनाव से पहले हरिश्चंद्र तो
चुनाव बाद धृतराष्ट्र ये अंधे
भूखे हैं बरसों के हैं सारे
नोचे खसोटें और देश को लूटें
बस लफ्फाजी ही लफ्फाजी
सारे वादे ही निकले झूठे
क़र्ज़ माफी के दाने डाल के
इतराते से घूम रहे हैं सारे
ज्यादा गरीब किसान को इन्होने
मूर्ख बना कर वोट झींटे
शर्म बेच खाई है सबने
देश सदा से देखो ये बेचे !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें