ज्यों दिखाई जाए ,हरी हरी घास बकरी को
दिखाया जाए बेहतरीन चुग्गा मुर्गी को ,
और मन ही मन मुस्कुराये ,कभी ये कभी वो कसाई
उसे अपनी ओर आता देख कर
और ज्यों ही पहुँच जाती है कसाई के पंजे में
जकड ही लेता है उसे लालच के शिकंजे में
दबोच कर उसकी गर्दन ,पहले से धार लगाईं,
धारदार छुरी से ,धीरे ,धीरे रेतने लगता है
शिकार चींखता है ,छटपटाता है ,दर्द से ज़ार ज़ार
चिल्लाता ,आँख से आसूं निकालता है
लेकिन जिस्म से खून बहा कर ,बेरहमी से खत्म हो जाता है
लेकिन नेता होता है अलहदा वह मारता नहीं ,ज़िंदा रखता है ,
मर मर के जीने के लिए ,अपना घर भरने के लिए
पुश्तों को बैठे बैठे खाने खिलाने के लिए,
चलाता रहता है जनता की गर्दन पे छुरी
वो चींखती चिल्लाती है ,लेकिन कुछ कर नहीं पाती ,
पांच साल के लिए दे जो चुकी है ,हक़ – ओ – इख्तियार !
दिखाया जाए बेहतरीन चुग्गा मुर्गी को ,
और मन ही मन मुस्कुराये ,कभी ये कभी वो कसाई
उसे अपनी ओर आता देख कर
और ज्यों ही पहुँच जाती है कसाई के पंजे में
जकड ही लेता है उसे लालच के शिकंजे में
दबोच कर उसकी गर्दन ,पहले से धार लगाईं,
धारदार छुरी से ,धीरे ,धीरे रेतने लगता है
शिकार चींखता है ,छटपटाता है ,दर्द से ज़ार ज़ार
चिल्लाता ,आँख से आसूं निकालता है
लेकिन जिस्म से खून बहा कर ,बेरहमी से खत्म हो जाता है
लेकिन नेता होता है अलहदा वह मारता नहीं ,ज़िंदा रखता है ,
मर मर के जीने के लिए ,अपना घर भरने के लिए
पुश्तों को बैठे बैठे खाने खिलाने के लिए,
चलाता रहता है जनता की गर्दन पे छुरी
वो चींखती चिल्लाती है ,लेकिन कुछ कर नहीं पाती ,
पांच साल के लिए दे जो चुकी है ,हक़ – ओ – इख्तियार !
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