मिट्टी सी ——
सब कहते हैं “वृद्धावस्था”बन जाती है एक बच्ची सी
माँ तुम भी मुझको कलतक लगती थी बच्ची सी
आज लेकिन खुद मैं ही बन गई हूँ बच्ची सी
गाहे बगाहे,जब-तब,सुबह-ओ-शाम,मैं हूँ मन की कच्ची सी
कभी डबडबा जाती हैं आँखे,कभी सिसकियाँ ,
कभी ज़ार ज़ार रोती हिचकी सी ,
जाने क्यूँ बन गई हूँ मैं बित्ती सी
ज्यों उंगली छूट जाने पर अम्मा की
ज़ोर ज़ोर से मुन्नी रोये इत्ती सी
जब से तुम समा गई मिट्टी में ,
सारी दुनिया मुझको लागे मिट्टी सी !!
माँ तुम भी मुझको कलतक लगती थी बच्ची सी
आज लेकिन खुद मैं ही बन गई हूँ बच्ची सी
गाहे बगाहे,जब-तब,सुबह-ओ-शाम,मैं हूँ मन की कच्ची सी
कभी डबडबा जाती हैं आँखे,कभी सिसकियाँ ,
कभी ज़ार ज़ार रोती हिचकी सी ,
जाने क्यूँ बन गई हूँ मैं बित्ती सी
ज्यों उंगली छूट जाने पर अम्मा की
ज़ोर ज़ोर से मुन्नी रोये इत्ती सी
जब से तुम समा गई मिट्टी में ,
सारी दुनिया मुझको लागे मिट्टी सी !!
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