एक टहनी एक दिन पतवार बनती है
एक चिंगारी दहक कर अंगार बनती है
जो सदा रौंदी गयी बेबस समझ कर
एक दिन मिटटी वही मीनार बनती है
एक चिंगारी दहक कर अंगार बनती है
जो सदा रौंदी गयी बेबस समझ कर
एक दिन मिटटी वही मीनार बनती है
एक मैं हूँ मुझे भूल याद आती है
एक वो हैं जिन्हे याद भूल जाती है
याद और भूल में फर्क बस इतना है
एक रोती है एक मुस्कुराती है
एक वो हैं जिन्हे याद भूल जाती है
याद और भूल में फर्क बस इतना है
एक रोती है एक मुस्कुराती है
साथ दुःख में निभाए वही मीत है
स्वार्थ जिसमे न आये वही जीत है
जीत वो जीत ले जो सबका दिल है
हर अधर जिसको गाये वही गीत है
स्वार्थ जिसमे न आये वही जीत है
जीत वो जीत ले जो सबका दिल है
हर अधर जिसको गाये वही गीत है
दुनिया प्यासे को तपन देती है
खिलते फूलों को दफ़न देती है
जीते जी तन को कपड़ा नहीं देती
मरने के बाद उसे कफ़न देती है
खिलते फूलों को दफ़न देती है
जीते जी तन को कपड़ा नहीं देती
मरने के बाद उसे कफ़न देती है
जौक की शायरी —-
सात दरिया के फ़राहम किये होंगे मोती
तब बना होगा इस अंदाज़ का गज भर सेहरा।
तब बना होगा इस अंदाज़ का गज भर सेहरा।
पिला मय आशकारा हमको ,किसकी साकिया चोरी
खुद की जब नहीं चोरी तो फिर बन्दे की क्या चोरी।
खुद की जब नहीं चोरी तो फिर बन्दे की क्या चोरी।
वाह साक़िया क्या हो दोहे दारु ए फरहत फ़ज़ा
जिसके एक कतरे से जिस्म में लोहू बढे।
जिसके एक कतरे से जिस्म में लोहू बढे।
मस्त इतने भी न हो इश्कबूतां में ए जौक
चाहिए बन्दे को हर वक़्त खुदा याद रहे।
चाहिए बन्दे को हर वक़्त खुदा याद रहे।
लेगा दिल इस इश्क से क्या तू जिसने कोहो सहारा में
मज़नू का वह हाल किया ,फरहाद का वह हाल किया।
मज़नू का वह हाल किया ,फरहाद का वह हाल किया।
दम आ चूका है लबों पे आँखों में इंतज़ार
बेदर्द जल्द आ कि वक़्त नहीं देर का।
बेदर्द जल्द आ कि वक़्त नहीं देर का।
जख्मे दिल पर मेरे क्यों मरहम का इस्तेमाल है
मुश्क गर महंगा है तो क्या खून का भी काल है
जितना है नमक सब मेरे ज़ख्मों में खपा दो
पलकों से उठाओ न आँखों से गिराओ।
मुश्क गर महंगा है तो क्या खून का भी काल है
जितना है नमक सब मेरे ज़ख्मों में खपा दो
पलकों से उठाओ न आँखों से गिराओ।
रात आती है तेरी याद में काट जाती है
आँख रह रह कर सितारे सी डबडबाती है
इतना बदनाम हो गया हूँ कि मेरे घर में
अब नींद भी आने से शर्माती है
आँख रह रह कर सितारे सी डबडबाती है
इतना बदनाम हो गया हूँ कि मेरे घर में
अब नींद भी आने से शर्माती है
चुरा के दिल मुट्ठी में छुपाये बैठे हैं
बहाना यह कि मेहंदी रचाये बैठे हैं
बहाना यह कि मेहंदी रचाये बैठे हैं
ग़ालिब —-
मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहे जिस वक़्त
मैं गया हुआ वक़्त नही हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
मैं गया हुआ वक़्त नही हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
एतबारे इश्क की खाना खराबी देखिये
गैर ने की आह ,वो खफा मुझसे हो गए
गैर ने की आह ,वो खफा मुझसे हो गए
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