suraj chachu
सूरज चाचू आसमान पे ,
बैठ हमें दहलाते हो।
आग के गोले ,या के शोले ,
दिन भर क्यों दहकाते हो
इतने निर्मम तो कभी नहीं थे
क्यों मौत को बांटा करते हो ?
वैसे ही त्रस्त हैं हम सारे जन,
तुम भी क्यों झुलसाते हो
क्यों पारा इतना चढ़ा तुम्हारा
कितनी अकड़ दिखाते हो
लगता है की गुस्से में तुम
सारा दिन भन्नाते हो !!
सूरज चाचू आसमान पे ,
बैठ हमें दहलाते हो।
आग के गोले ,या के शोले ,
दिन भर क्यों दहकाते हो
इतने निर्मम तो कभी नहीं थे
क्यों मौत को बांटा करते हो ?
वैसे ही त्रस्त हैं हम सारे जन,
तुम भी क्यों झुलसाते हो
क्यों पारा इतना चढ़ा तुम्हारा
कितनी अकड़ दिखाते हो
लगता है की गुस्से में तुम
सारा दिन भन्नाते हो !!
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