फितरत——–
जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर होता है कौन सा,
दुःख,नहीं,वह तो आता है गुजर जाता है,
वक़्त के मरहम से ठीक हो जाते हैं काफी ज़ख्म,
जो रह जाते हैं ,देते हैं टीस कभी कभी,
तो फिर?कश्मकश ?
हां यही तो है,उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच का,
सबसे मुश्किल दौर,
न उम्मीद की लौ बुझे,न नाउम्मीदी का घना अंधेरा हो,
न ख़ुशी से जी पाए ,न गम से मर सके इंसा,
जिंदगी की बेपनाह चाह लिये ,
मानो मौत ही माँगने लगे इंसा ,
क्योंकि यह तो उसकी फितरत नहीं,
वह रह सकता है इस पार या फिर उस पार!
शब्द अर्थ—कश्मकश -असमंजस ,फितरत–स्वभाव
उलझन ——————————
छोटी छोटी उलझनें,
और बड़ी बड़ी भी,
एक सुलझे तो दूसरी,
और दूसरी सुलझे तो तीसरी,
चलता ही रहता है सिलसिला,
जिंदगी हो मानो,,
उलझे हुए धागों का बड़ा सा पहाड़,
जिसमे हर वक़्त,किसी एक धागे का सिरा हाथ में लिये ,
उसका दूसरा सिरा तलाशता रहता है इंसान,
एक धागे का दूसरा सिरा हाथ में आता है बमुश्किल,
की वक़्त उसके हाथों में ,
थमा देता है,
किसी दूसरे उलझे धागे का एक और सिरा!
शब्द अर्थ—-बमुश्किल–बड़ी मुश्किल से
जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर होता है कौन सा,
दुःख,नहीं,वह तो आता है गुजर जाता है,
वक़्त के मरहम से ठीक हो जाते हैं काफी ज़ख्म,
जो रह जाते हैं ,देते हैं टीस कभी कभी,
तो फिर?कश्मकश ?
हां यही तो है,उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच का,
सबसे मुश्किल दौर,
न उम्मीद की लौ बुझे,न नाउम्मीदी का घना अंधेरा हो,
न ख़ुशी से जी पाए ,न गम से मर सके इंसा,
जिंदगी की बेपनाह चाह लिये ,
मानो मौत ही माँगने लगे इंसा ,
क्योंकि यह तो उसकी फितरत नहीं,
वह रह सकता है इस पार या फिर उस पार!
शब्द अर्थ—कश्मकश -असमंजस ,फितरत–स्वभाव
उलझन ——————————
छोटी छोटी उलझनें,
और बड़ी बड़ी भी,
एक सुलझे तो दूसरी,
और दूसरी सुलझे तो तीसरी,
चलता ही रहता है सिलसिला,
जिंदगी हो मानो,,
उलझे हुए धागों का बड़ा सा पहाड़,
जिसमे हर वक़्त,किसी एक धागे का सिरा हाथ में लिये ,
उसका दूसरा सिरा तलाशता रहता है इंसान,
एक धागे का दूसरा सिरा हाथ में आता है बमुश्किल,
की वक़्त उसके हाथों में ,
थमा देता है,
किसी दूसरे उलझे धागे का एक और सिरा!
शब्द अर्थ—-बमुश्किल–बड़ी मुश्किल से
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