सुलगन—–
फिर दिल सुलगा,
दिल के शीशे पर फिर पड़ा कोई पत्थर,
पड़ी कोई नई दरार,
फिर किरच गया दिल,
बरसों से गिर रहा है बूँद बूँद तेजाब,
कोई और दिल होता तो शायद दे देता जवाब,
मेरा है कि धड़क रहा है अब तक,
शक्ल बदल गई है इसकी टूटते दरकते,
लेकिन आज भी जिन्दा राखी है इसने,
मेरी खुद्दारी,मरी अच्छाई ,
मेरी मोहब्बत,मेरी पारसाई,
जब तब हो जाता है इम्तहान जिनका,
और जब निकलता है नतीजा,
तो पाती हूँ खुद को अव्वल,
शुक्रिया दुनिया वालों,
शुक्र है ख़ुदा की खुदाई!
शब्द अर्थ–खुद्दारी–स्वाभिमान,किरचना –टूटे शीशे का स्पर्ष ,अव्वल–प्रथम श्रेणी ,पारसाई–पारदर्शिता
दरकना –दरार पड़ना
तबाही——
कितनी हसीन कितनी दिलकश है कायनात,
शफ्फाफ बर्फ के अर्श चूमते पहाड़,गहरी घाटियां ,
मीलों दूर तक फैले हरे भरे खेत ओ बागान,
इठलाती बलखाती,और अठखेलियां करती नदियां ,
जिसका दूसरा किनारा न दिखाई दे वो समंदर,
सब्ज़ पत्ते,सुर्ख गुलाब,
और न जाने कितने रंगों से भरे गुल ए गुलज़ार ,
सितारों से भरा नीला आसमान,
उस पर चहकते तरह तरह के पंछी,
घने जंगल और उनमे बेख़ौफ़ घूमते चौपाये,
क्या तस्वीर हुबाहू है वैसी ,
जैसी इन अल्फाजों में है मौजूद?
कतई नहीं,
कटते जंगल,उजड़ते चमन,
और हर जगह पंजे गड़ाता आदमजात,
खौफजदा मासूम चौपाये,
हर वक़्त होते जिसके शिकार,
जहरीली हवा,जहरीला पानी,
और सबसे ऊपर जहरीला इंसान,
चाहे पानी में तैरने वाले हो,
या आसमान में उड़ने वाले,
और जमीन पर चलने वाले,
ये जीने की चाहत रखने वाले,
ये जीने के हक़दार,
क्यों होते हैं शिकार,
क्यों सिसकती है धरती?
क्यों आते हैं जलजले?
क्यों दहाड़ता है समंदर?
क्यों लाखों को निगल जाती है सुनामी?
क्यों छोड़ जाती है तबाहियों के निशां ?
और सुनने सुनाने को बस एक दास्तान ,
एक दर्द भरी दास्तान!
शब्द अर्थ—कायनात–प्रकृति,जलजला– भूकंप,शफ्फाफ–सफ़ेद,सब्ज़-हरा,अर्श–आसमान
फिर दिल सुलगा,
दिल के शीशे पर फिर पड़ा कोई पत्थर,
पड़ी कोई नई दरार,
फिर किरच गया दिल,
बरसों से गिर रहा है बूँद बूँद तेजाब,
कोई और दिल होता तो शायद दे देता जवाब,
मेरा है कि धड़क रहा है अब तक,
शक्ल बदल गई है इसकी टूटते दरकते,
लेकिन आज भी जिन्दा राखी है इसने,
मेरी खुद्दारी,मरी अच्छाई ,
मेरी मोहब्बत,मेरी पारसाई,
जब तब हो जाता है इम्तहान जिनका,
और जब निकलता है नतीजा,
तो पाती हूँ खुद को अव्वल,
शुक्रिया दुनिया वालों,
शुक्र है ख़ुदा की खुदाई!
शब्द अर्थ–खुद्दारी–स्वाभिमान,किरचना –टूटे शीशे का स्पर्ष ,अव्वल–प्रथम श्रेणी ,पारसाई–पारदर्शिता
दरकना –दरार पड़ना
तबाही——
कितनी हसीन कितनी दिलकश है कायनात,
शफ्फाफ बर्फ के अर्श चूमते पहाड़,गहरी घाटियां ,
मीलों दूर तक फैले हरे भरे खेत ओ बागान,
इठलाती बलखाती,और अठखेलियां करती नदियां ,
जिसका दूसरा किनारा न दिखाई दे वो समंदर,
सब्ज़ पत्ते,सुर्ख गुलाब,
और न जाने कितने रंगों से भरे गुल ए गुलज़ार ,
सितारों से भरा नीला आसमान,
उस पर चहकते तरह तरह के पंछी,
घने जंगल और उनमे बेख़ौफ़ घूमते चौपाये,
क्या तस्वीर हुबाहू है वैसी ,
जैसी इन अल्फाजों में है मौजूद?
कतई नहीं,
कटते जंगल,उजड़ते चमन,
और हर जगह पंजे गड़ाता आदमजात,
खौफजदा मासूम चौपाये,
हर वक़्त होते जिसके शिकार,
जहरीली हवा,जहरीला पानी,
और सबसे ऊपर जहरीला इंसान,
चाहे पानी में तैरने वाले हो,
या आसमान में उड़ने वाले,
और जमीन पर चलने वाले,
ये जीने की चाहत रखने वाले,
ये जीने के हक़दार,
क्यों होते हैं शिकार,
क्यों सिसकती है धरती?
क्यों आते हैं जलजले?
क्यों दहाड़ता है समंदर?
क्यों लाखों को निगल जाती है सुनामी?
क्यों छोड़ जाती है तबाहियों के निशां ?
और सुनने सुनाने को बस एक दास्तान ,
एक दर्द भरी दास्तान!
शब्द अर्थ—कायनात–प्रकृति,जलजला– भूकंप,शफ्फाफ–सफ़ेद,सब्ज़-हरा,अर्श–आसमान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें