तक़सीम ——{प्रकाशित—सितम्बर –2005,”मज़मून”पत्रिका }
सारी खुशियाँ ,सारे गम,
क्यूँ बराबरी से न हुए तकसीम,
ज्यादातर ज़ाहिल ही बने बैठे हैं खुदा,
मायूसी से घिरे बैठे हैं ज़हीन,
जो करते हैं रोज ,अमानत में खयानत,
वे ही बन जाते हैं हमारे अमीन,
चोर चोर मौसेरे भाई ठहरे,
आपसी गल्तियों पर करें आमीन आमीन,
टी वी अखबारों की खबरें,
बमुश्किल ही आता है यकीन,
बेगुनाह खून के छीटों से देखो,
सुर्ख हो रही है ज़मीन ,
कैसे जिये कोई इत्मिनान से,
कैसे रह पाए मुतमईन !
शब्द अर्थ—बंटवारा,मुतमईन–संतुष्ट,अमानत में खयानत–कृतघ्नता
सारी खुशियाँ ,सारे गम,
क्यूँ बराबरी से न हुए तकसीम,
ज्यादातर ज़ाहिल ही बने बैठे हैं खुदा,
मायूसी से घिरे बैठे हैं ज़हीन,
जो करते हैं रोज ,अमानत में खयानत,
वे ही बन जाते हैं हमारे अमीन,
चोर चोर मौसेरे भाई ठहरे,
आपसी गल्तियों पर करें आमीन आमीन,
टी वी अखबारों की खबरें,
बमुश्किल ही आता है यकीन,
बेगुनाह खून के छीटों से देखो,
सुर्ख हो रही है ज़मीन ,
कैसे जिये कोई इत्मिनान से,
कैसे रह पाए मुतमईन !
शब्द अर्थ—बंटवारा,मुतमईन–संतुष्ट,अमानत में खयानत–कृतघ्नता
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