मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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बुधवार, 28 मार्च 2018

Do Kavita !!

.इतनी जगह तो बना ही ली हैं मैने आपके दिल में.

कल को ना भी रहू मैं तो भी याद करोगे 


नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,,
तब सुख के मिले समन्दर का
रह जाता कोई अर्थ नहीं

जब फसल सूख कर जल के बिन
तिनका -तिनका बन गिर जाये
फिर होने वाली वाली वर्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं

छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
निकले जाते हैं रोज़ जहां
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं.

मन कटुवाणी से आहत हो
भीतर तक छलनी हो जाये
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं

सुख-साधन चाहे जितने हों
पर काया रोगों का घर हो
फिर उन अगनित सुविधाओं का
रह जाता कोई अर्थ नहीं


कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।।

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।।

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।।

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।।

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

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