मुनव्वर राणा----
अजब दुनिया है
नाशायर मशहूर हो जातें हैं
जो शायर हैं
वो महफ़िल में दरी चादर उठाते हैं
इन्हे फिरका परस्ती मत सिखा देना
ये बच्चे ज़मीन से चुनकर तितली के पर उठाते हैं !
हमारा तीर कुछ भी हो ,निशाने तक पहुँचता है
हर परिंदा शाम होते ही ठिकाने तक पहुंचता है
सियासत किस हुनरमंदी से
गुनाह छुपाती है
सिसकियों को जैसे
शहनाई छुपाती है !
अभी ए जिंदगी तुझको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा शाने तक पहुंचता है !
मेरी थकन के हवाले ,बदलती रहती है
ए जिंदगी तुझे कब तक बचाऊंगा
मौत हमेशा निवाले बदलती है
उम्मीद रोज वफादार खादिमा की तरह
तसल्लियों के प्याले बदलती है
एक तेरे न रहने से ,बदल जाता है सबकुछ
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी
मैं दुनिया के मियार पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मेरे मियार पे पूरी नहीं उतरी !
ए अँधेरे देख ले ,मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी ,उजाला हो गया !
अब नज़र आती नहीं दीवार पर कोई दरार
लग चुके हैं इन पर इतने इश्तहार
इस सिरे से उस सिरे तक
हर शख्स है जुर्मे शरीक
या वो छूटा है जमानत पर
या फिर है फरार
रौनके ज़न्नत ना कहीं आयी नज़र
मैं जहन्नुम में भी खुश था परवर दिगार !
इश्क खता है तो ये खता
एक बार नहीं सौ बार करो
आज हम दोनों को फुर्सत है
चलो इश्क करें
इश्क दोनों की ज़रुरत है
चलो इश्क करें
इसमें नुक़सान का खतरा ही नहीं रहता
ये मुनाफे की तिज़ारत है
चलो इश्क करें
मैं हिन्दू ,आप मुसलमान
वो सिख ,अजी छोडो
ये सियासत है
चलो इश्क करें !
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना ,खिलाया करो
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम के पत्तों को चबाया करो
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
घर उसी का सही
तुम भी हकदार हो रोज आया करो
उसकी कत्थई आँखों में है
जंतर मंतर सब
चाकू वकु छुरियाँ वुरियां खंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठी हो
मुझसे रूठे हैं तकिया वाकिया चादर वादर बिस्तर विस्तर
मुझसे बिछड़ कर वो भी कहाँ पहले जैसी है
फीके पड़ गए ,कपडे वपड़े जेवर वेवर सब !
किसने दस्तक दी ये दिल पर ,कौन है
आप तो अंदर हैं बाहर कौन है
राज जो कुछ हो ,इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना ,दबा भी देना
जुबां तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढ़ाव
मैं कैसे पढूंगा मुझे किताब तो दे !
उसकी याद आयी है साँसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है
तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई और चलाता है
हम अपने बूढें चरागों पे खूब इतराये
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक दिन मरने वाला था
तूफानों से आँख मिलाओ सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो ,तैर के दरिया पार करो !
राहत इंदौरी की कलम से -------
काबे से बुतक़दे से
कभी बज़मे जाम से
आवाज दे रहा हूँ तुझे
हर मकाम से
खुद ही बुझा दिया है
चरागों को शाम से
दो ही तो दोस्त थे मेरे
जो उम्र भर मुझे
देते रहे फरेब
मोहब्बत के नाम से !
ख्वाब के जैसे ही झूठे मेरे यकीन निकले
आप मेहबूब तो क्या दोस्त भी नहीं निकले !
किसी को घर मिला हिस्से में
किसी को दुकान आयी
मैं सबसे छोटा था घर में
मेरे हिस्से में माँ आई !
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं आँखें लेकिन
तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यकीं हैं लेकिन
क्या ज़रूरी है की हरबार मैं
अच्छा हो जाऊं
मैं सियासत में चला जाऊं
तो गन्दा हो जाऊं
अजब दुनिया है
नाशायर मशहूर हो जातें हैं
जो शायर हैं
वो महफ़िल में दरी चादर उठाते हैं
इन्हे फिरका परस्ती मत सिखा देना
ये बच्चे ज़मीन से चुनकर तितली के पर उठाते हैं !
हमारा तीर कुछ भी हो ,निशाने तक पहुँचता है
हर परिंदा शाम होते ही ठिकाने तक पहुंचता है
सियासत किस हुनरमंदी से
गुनाह छुपाती है
सिसकियों को जैसे
शहनाई छुपाती है !
अभी ए जिंदगी तुझको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा शाने तक पहुंचता है !
मेरी थकन के हवाले ,बदलती रहती है
ए जिंदगी तुझे कब तक बचाऊंगा
मौत हमेशा निवाले बदलती है
उम्मीद रोज वफादार खादिमा की तरह
तसल्लियों के प्याले बदलती है
एक तेरे न रहने से ,बदल जाता है सबकुछ
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी
मैं दुनिया के मियार पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मेरे मियार पे पूरी नहीं उतरी !
ए अँधेरे देख ले ,मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी ,उजाला हो गया !
अब नज़र आती नहीं दीवार पर कोई दरार
लग चुके हैं इन पर इतने इश्तहार
इस सिरे से उस सिरे तक
हर शख्स है जुर्मे शरीक
या वो छूटा है जमानत पर
या फिर है फरार
रौनके ज़न्नत ना कहीं आयी नज़र
मैं जहन्नुम में भी खुश था परवर दिगार !
इश्क खता है तो ये खता
एक बार नहीं सौ बार करो
आज हम दोनों को फुर्सत है
चलो इश्क करें
इश्क दोनों की ज़रुरत है
चलो इश्क करें
इसमें नुक़सान का खतरा ही नहीं रहता
ये मुनाफे की तिज़ारत है
चलो इश्क करें
मैं हिन्दू ,आप मुसलमान
वो सिख ,अजी छोडो
ये सियासत है
चलो इश्क करें !
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना ,खिलाया करो
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम के पत्तों को चबाया करो
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
घर उसी का सही
तुम भी हकदार हो रोज आया करो
उसकी कत्थई आँखों में है
जंतर मंतर सब
चाकू वकु छुरियाँ वुरियां खंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठी हो
मुझसे रूठे हैं तकिया वाकिया चादर वादर बिस्तर विस्तर
मुझसे बिछड़ कर वो भी कहाँ पहले जैसी है
फीके पड़ गए ,कपडे वपड़े जेवर वेवर सब !
किसने दस्तक दी ये दिल पर ,कौन है
आप तो अंदर हैं बाहर कौन है
राज जो कुछ हो ,इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना ,दबा भी देना
जुबां तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढ़ाव
मैं कैसे पढूंगा मुझे किताब तो दे !
उसकी याद आयी है साँसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है
तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई और चलाता है
हम अपने बूढें चरागों पे खूब इतराये
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक दिन मरने वाला था
तूफानों से आँख मिलाओ सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो ,तैर के दरिया पार करो !
राहत इंदौरी की कलम से -------
काबे से बुतक़दे से
कभी बज़मे जाम से
आवाज दे रहा हूँ तुझे
हर मकाम से
खुद ही बुझा दिया है
चरागों को शाम से
दो ही तो दोस्त थे मेरे
जो उम्र भर मुझे
देते रहे फरेब
मोहब्बत के नाम से !
ख्वाब के जैसे ही झूठे मेरे यकीन निकले
आप मेहबूब तो क्या दोस्त भी नहीं निकले !
किसी को घर मिला हिस्से में
किसी को दुकान आयी
मैं सबसे छोटा था घर में
मेरे हिस्से में माँ आई !
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं आँखें लेकिन
तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यकीं हैं लेकिन
क्या ज़रूरी है की हरबार मैं
अच्छा हो जाऊं
मैं सियासत में चला जाऊं
तो गन्दा हो जाऊं
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