यथार्थ -------
माफ़ करना पर मुझे कहने देना
शब्दों पर न जाना विचारों को समझ लेना
बेतरतीब से विचारों के बवंडर
बुन रहें हैं मन में तानाबाना
मुस्लिम का माँ के क़दमों में ज़न्नत ढूंढना
या हिन्दू का कन्यादान को महादान मानना
क्या गलत क्या सही है ,
जन्म से पहले भ्रूण रूप में उसे समाप्त करना
कबीर ने प्रभु को स्मरण किया
नाम देव ने भी सुख दुःख समतुल्य जाना
मानव ने केवल सुख ही चाहा
दुःख आया तो हुआ दीवाना
तय है मानव का धरती पर आना जाना
कर्मों के अनुकूल सुख दुःख पाना
हास्यास्पद है दुःख से घबराना
और ढोंगी बाबाओं की शरण में जाना
धर्म का आडम्बर ,कर्म का भी आडम्बर करना
ज्योतिषियों के बताये रत्न धारण करना
मानव चाहे अब प्रभु को भी हथियाना !
माफ़ करना पर मुझे कहने देना
शब्दों पर न जाना विचारों को समझ लेना
बेतरतीब से विचारों के बवंडर
बुन रहें हैं मन में तानाबाना
मुस्लिम का माँ के क़दमों में ज़न्नत ढूंढना
या हिन्दू का कन्यादान को महादान मानना
क्या गलत क्या सही है ,
जन्म से पहले भ्रूण रूप में उसे समाप्त करना
कबीर ने प्रभु को स्मरण किया
नाम देव ने भी सुख दुःख समतुल्य जाना
मानव ने केवल सुख ही चाहा
दुःख आया तो हुआ दीवाना
तय है मानव का धरती पर आना जाना
कर्मों के अनुकूल सुख दुःख पाना
हास्यास्पद है दुःख से घबराना
और ढोंगी बाबाओं की शरण में जाना
धर्म का आडम्बर ,कर्म का भी आडम्बर करना
ज्योतिषियों के बताये रत्न धारण करना
मानव चाहे अब प्रभु को भी हथियाना !
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