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शनिवार, 18 जनवरी 2020

Dharavahik Upanyas : Anhoni !! { 1 }

यह कहानी आज की नहीं कई दशकों पूर्व की है। राजा विश्वनाथ सिंह अपने बड़े से दीवानखाने में मसनद पर बैठे हुक्का गुड़गुडा रहे थे।  वे काफी बेचैन से लग रहे थे। थोड़ी देर पहले उनका दीवानखाना कस्बे  के प्रतिष्ठित लोगों से भरा हुआ था। रोज़ की तरह  हंसी ठहाकों से गूँज रहा था,लेकिन अचानक ही बिसनू  आया था हांफता घबराता हुआ सा, उसके चेहरे पर हवाईयां छाई थी ,कुछ पलों तक वह कुछ बोल न पाया,खौफ और डर उसके चेहरे को सफ़ेद किये दे रहा था,सभी लोग उसकी ओर  प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे ,अटकते अटकते वो कह पाया "अं-----जू ----री  उसकी उंगली टेकरी की तरफ इशारा कर रही थी.कौन थी अंजूरी ? उस कस्बे का नाम रतनगढ़ था और वहां एक हाईस्कूल और एक महाविद्यालय भी था। राजा विश्वनाथ सिंह वहां के ज़मीदार थे ,हालाँकि आज़ादी के बाद न तो राजे रजवाड़े रहे थे और ना ही जमींदारों की जमींदारी रही थी। राजा विश्वनाथसिंह इतनी बड़ी हवेली में पत्नी के गुजरने के बाद अपने एकमात्र बेटे कमलेश्वर के साथ और नौकरों की भीड़ के साथ ,अकेले रह गए थे।  दो वर्षों पूर्व उनकी पत्नी श्रीमती महादेवी का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था।  कमलेश्वर उस समय बीस वर्ष का था तथा महाविद्यालय में कला स्नातक कोर्स का विद्यार्थी था। 
राजा विश्वनाथ सिंह की गहन विचार शृंखला उन्हें उनके अतीत  की ओर ले गई।  वे अपने खानदान के इकलौते चिराग थे और उनकी शादी उनके पूज्य पिता श्री राघवेंद्र की इच्छा से महादेवी के साथ हुई थी और वे भी अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं ,इस तरह उनके पास संपत्ति द्विगुणित हो गई। विवाह के दो वर्षों पश्चात् ही ईश्वर ने उन्हें पुत्र रत्न प्रदान किया।  महादेवी एक सुन्दर सुशील और सुलझी हुई महिला थी,और उन्होंने बहुत प्रेम एवं अनुशासन से अपने इकलौते पुत्र कमलेश्वर का पालन पोषण किया था ,किन्तु दुर्भाग्यवश वे स्वयं एक असाध्य रोग की चपेट में आ गई।  यह बात पूरे परिवार के लिए अत्यंत ही बड़े सदमे की तरह थी। ------क्रमशः -----

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