अगला सप्ताह इसी तरह पढाई और रिहर्सल की व्यस्तता में गुज़रा। दोनों ही पढाई में भी अव्वल थे इसलिए वे किसी भी क्लास को और घर में की जाने वाली पढाई को भरसक साथ साथ करते रहे। दोनों के लिए यह काफी था कि वे एक साथ हैं --पढाई में ,रिहर्सल में ,और एक दूसरे के विचारों में भी। अंजुरी को अगले रविवार की प्रतीक्षा थी किन्तु जैसा उसने सोचा था कि उसे कमल से मिलने के कुछ अवसर मिलेंगे ,वैसा कुछ भी ना हुआ बल्कि रविवार को सिंधु वर्गीस मैडम ने कस कर रिहर्सल करा ली। वे अब संतुष्ट थीं कि अब थोड़ा बहुत रोज करते करते प्रैक्टिस परफेक्ट हो जाएगी और नाटक का मंचन भी सही होगा ,बाकि के तीनो नृत्य भी बहुत ही अच्छे तैयार हुए थे। शेष फिलर्स में संदीप आर्य का बांसुरीवादन ,महेश चौहान का माउथ ऑर्गन ,तथा शिवम् राठी का सोलो सॉन्ग भी काफी बेहतर थे। चूँकि आशा शर्मा एवं सिंधु वर्गीस मैडम को ग्रीन रूम सम्हालना था और क्रमानुसार सभी को स्टेज पर भेजना ,तीनो नृत्यों के गीत गाना और प्रॉम्प्टिंग के लिए भी तैयार रहना था,उन्होंने स्टेज पर एंकरिंग करने हेतु दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर दिनेश प्रधान को प्रति वर्ष के लिए कह दिया था। वे एक परफेक्ट एंकर थे ,वे प्रत्येक कार्यक्रम की भूमिका इतनी अच्छी तरह प्रस्तुत करते थे कि दर्शक उसे देखने के लिए उत्कंठित हो जाते थे। चार बजे छुट्टी हो गई और सभी अपने अपने घर चले गए।
हाँ ! अगले रविवार को ज़रूर फिर से अंजुरी और कमलेश्वर को मिलने का मौका मिल गया,उस दिन भी सिंधु वर्गीस मैडम ने 2 बजे तक ही रिहर्सल करवाई ,यह कह कर कि अब इतना ही करना काफी होगा प्रोग्राम के दिन तक। सभी छात्र छात्राएं और दोनों मैडम भी जल्दबाजी में घर को निकल गयी। अंजुरी क्लास रूम के बाहर अपनी स्क्रिप्ट पलटती रही और कमलेश्वर लाइब्रेरी के बाहर लगे नोटिसबोर्ड पर नोटिस पढता रहा। सबके नज़रों से ओझल होते ही दोनों झपट कर सड़क पार कर सामने वाली टेकरी की पगडण्डी पर पहुँच गए। आज अंजुरी ने देखा कि कमल भी उससे मिलने को उतना ही विकल था जितनी कि हर बार वो हुआ करती थी। दोनों ही अब एक दूसरे पर अपना अधिकार समझने लगे थे। ---क्रमशः -----
हाँ ! अगले रविवार को ज़रूर फिर से अंजुरी और कमलेश्वर को मिलने का मौका मिल गया,उस दिन भी सिंधु वर्गीस मैडम ने 2 बजे तक ही रिहर्सल करवाई ,यह कह कर कि अब इतना ही करना काफी होगा प्रोग्राम के दिन तक। सभी छात्र छात्राएं और दोनों मैडम भी जल्दबाजी में घर को निकल गयी। अंजुरी क्लास रूम के बाहर अपनी स्क्रिप्ट पलटती रही और कमलेश्वर लाइब्रेरी के बाहर लगे नोटिसबोर्ड पर नोटिस पढता रहा। सबके नज़रों से ओझल होते ही दोनों झपट कर सड़क पार कर सामने वाली टेकरी की पगडण्डी पर पहुँच गए। आज अंजुरी ने देखा कि कमल भी उससे मिलने को उतना ही विकल था जितनी कि हर बार वो हुआ करती थी। दोनों ही अब एक दूसरे पर अपना अधिकार समझने लगे थे। ---क्रमशः -----
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