दोनों तेजी से सीढ़ियां चढ़ते हुए बातें भी करते जा रहे थे। दोनों ही हांफ रहे थे। दोनों ने पहले दुर्गा माँ के दर्शन किये और फिर झाड़ियों के बीच अपनी छुपी हुई जगह पर आ बैठे थे। अंजुरी ने अपनी वॉटर बैग से पानी निकल कर हाथ धोए और कमल की ओर बढ़ा दिया। दोनों ने ही बड़े प्यार से एक दूसरे को खिलाते हुए खाना खाया। उन्होंने नाटक की बातें भी कीं और पढाई की भी।
सहसा अंजुरी ने पूछा मंदिर के पीछे क्या है ?
"गहरी खाई है " कमल बोला
चलो मुझे देखनी है "
"नहीं नहीं वो बहुत खतरनाक जगह है "
" नहीं मुझे देखनी है "अंजुरी ज़िद करते हुए बोली
"ठीक है। चलो ! हथियार डालता हुआ सा कमल बोला "
दोनों मंदिर के पिछले भाग की ओर गए ,वाकई वहां से नीचे गहरी खाई दिखाई पड़ रही थी। हालाँकि तार की बाड़ लगी थी बस परिक्रमा की जगह सुरक्षित थी। "
तार की बाड़ का अंतर भी काफी था और वह काफी पुरानी सी ,जंग लगी और कई जगह से टूटी हुई थी।
"चलो देर हो गई है " कमल ने उसे याद दिलाया। '
"अंजुरी ने अपनी घडी देखी ,पौने चार बज रहे थे। वह उदास सी हो उठी। कितनी जल्दी दो घंटे बीत जाते हैं। वो दिन कब आएगा जब हम साथ साथ रह पाएंगे।
कमलेश्वर को सहसा अपने पिता का कठोर चेहरा याद आया और एक ठंडी सी सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। उसने कोई जवाब नहीं दिया और वे सीढ़ियां उतरने लगे।
जिस जगह से दोनों को अलग होना था वह जगह भी आ पहुंचे। दोनों ने एक दूसरे को देखा। आज दोनों ही आतुर थे ,दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन बद्ध किया। कमल अस्फुट से स्वर में बोल रहा था ,ओह ,अंजुरी ,पता नहीं क्या लिखा है हमारी किस्मत में "
"अलग होकर कमल के बालो को छितराति हुई अंजुरी बोली ," सब ठीक होगा " वह तुरंत मुड़ कर झाड़ियों के बीच से निकल गई। कमल ने अपनी साइकिल पलटा ली और घर की ओर चल पड़ा। क्रमशः -----
सहसा अंजुरी ने पूछा मंदिर के पीछे क्या है ?
"गहरी खाई है " कमल बोला
चलो मुझे देखनी है "
"नहीं नहीं वो बहुत खतरनाक जगह है "
" नहीं मुझे देखनी है "अंजुरी ज़िद करते हुए बोली
"ठीक है। चलो ! हथियार डालता हुआ सा कमल बोला "
दोनों मंदिर के पिछले भाग की ओर गए ,वाकई वहां से नीचे गहरी खाई दिखाई पड़ रही थी। हालाँकि तार की बाड़ लगी थी बस परिक्रमा की जगह सुरक्षित थी। "
तार की बाड़ का अंतर भी काफी था और वह काफी पुरानी सी ,जंग लगी और कई जगह से टूटी हुई थी।
"चलो देर हो गई है " कमल ने उसे याद दिलाया। '
"अंजुरी ने अपनी घडी देखी ,पौने चार बज रहे थे। वह उदास सी हो उठी। कितनी जल्दी दो घंटे बीत जाते हैं। वो दिन कब आएगा जब हम साथ साथ रह पाएंगे।
कमलेश्वर को सहसा अपने पिता का कठोर चेहरा याद आया और एक ठंडी सी सिहरन उसके बदन में दौड़ गई। उसने कोई जवाब नहीं दिया और वे सीढ़ियां उतरने लगे।
जिस जगह से दोनों को अलग होना था वह जगह भी आ पहुंचे। दोनों ने एक दूसरे को देखा। आज दोनों ही आतुर थे ,दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन बद्ध किया। कमल अस्फुट से स्वर में बोल रहा था ,ओह ,अंजुरी ,पता नहीं क्या लिखा है हमारी किस्मत में "
"अलग होकर कमल के बालो को छितराति हुई अंजुरी बोली ," सब ठीक होगा " वह तुरंत मुड़ कर झाड़ियों के बीच से निकल गई। कमल ने अपनी साइकिल पलटा ली और घर की ओर चल पड़ा। क्रमशः -----
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