एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही पतिव्रता सावित्री की याद आ जाती है ,वह सावित्री जिसने अपने सतीत्व के तेज से और अपनी बुद्धिमता से स्वयं यमराज को भी अपने मृत पति के प्राण लौटने को बाध्य कर दिया था।
मैं जिस सावित्री की बात कर रही हूँ वह अपने पति के प्राण तो वापस नहीं ला सकी किन्तु संघर्ष के कठोर धरातल पर जिसने अपने तीन बच्चों को ,अपने पति की इन अमूल्य निशानियों को पाल पोस कर बड़ा किया वह निश्चित रूप से उन्हें वंदनीय बनता है।
जब कष्ट जीवन में आता है तो मानव ईश्वर की शरण में जाता है और चाहता है शीघ्रतिशीघ्र उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाएँ। यदि कष्टों का क्रम काफी कठोर हो और उसके बाद भी धैर्य और संयम के साथ उसका सामना किया जा रहा हो तो उस समय मेरी आँखों के सामने सावित्री का चेहरा उभरता है।
आज उन्हें देख कर यह अच्छी तरह कल्पना की जा सकती है कि वे अपनी युवावस्था में बहुत सुन्दर रही होंगी। प्रायः रोज सुबह मैं उन्हें देख लेती हूँ,वे एक स्टेशनरी शॉप की मालकिन हैं और मुझे लिखने का शौक है। उन्होंने मुझे काफी साड़ी नोटबुक्स सहर्ष दीं ,जो थोड़े बहुत खोट के कारण बिक नहीं सकती थीं।
मैंने जब पड़ौस के तीन बच्चों को चैरिटी के रूप में पढ़ाना आरम्भ किया और जब जब भी उन बच्चों के लिए थोड़ा बहुत स्टेशनरी का सामान खरीदना चाहा तो उन्होंने उसमे अपनी भी चैरिटी सम्मिलित कर दी।
यह सत्य है कि मनुष्य इस संसार से कुछ भी लेकर नहीं जाता उसका शरीर भी राख होकर पंच तत्व में विलीन हो जाता है। पटाक्षेप [ पर्दा गिर जाना ] हो जाता है। कृष्ण ने गीता में कहा है ,"तू क्या लेकर आया है और क्या लेकर जायेगा ?न पिता,न पति ,न पत्नी,न पुत्र,भाई बंधु कोई भी तेरा नहीं है ,तू उस परमपिता की संतान है और अपनी समझ से अच्छे कर्म करने के लिए आया है। सावित्री एक ऐसा नाम है जिसे मैं अपने स्वरचित संग्रह में जोड़ने जा रही हूँ। यह संग्रह मेरे इस ब्लॉग पर हमेशा रहेगा। और मेरे लेखन में यह नाम भी चिरंतन {सदैव } रहेगा।
मैं जिस सावित्री की बात कर रही हूँ वह अपने पति के प्राण तो वापस नहीं ला सकी किन्तु संघर्ष के कठोर धरातल पर जिसने अपने तीन बच्चों को ,अपने पति की इन अमूल्य निशानियों को पाल पोस कर बड़ा किया वह निश्चित रूप से उन्हें वंदनीय बनता है।
जब कष्ट जीवन में आता है तो मानव ईश्वर की शरण में जाता है और चाहता है शीघ्रतिशीघ्र उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाएँ। यदि कष्टों का क्रम काफी कठोर हो और उसके बाद भी धैर्य और संयम के साथ उसका सामना किया जा रहा हो तो उस समय मेरी आँखों के सामने सावित्री का चेहरा उभरता है।
आज उन्हें देख कर यह अच्छी तरह कल्पना की जा सकती है कि वे अपनी युवावस्था में बहुत सुन्दर रही होंगी। प्रायः रोज सुबह मैं उन्हें देख लेती हूँ,वे एक स्टेशनरी शॉप की मालकिन हैं और मुझे लिखने का शौक है। उन्होंने मुझे काफी साड़ी नोटबुक्स सहर्ष दीं ,जो थोड़े बहुत खोट के कारण बिक नहीं सकती थीं।
मैंने जब पड़ौस के तीन बच्चों को चैरिटी के रूप में पढ़ाना आरम्भ किया और जब जब भी उन बच्चों के लिए थोड़ा बहुत स्टेशनरी का सामान खरीदना चाहा तो उन्होंने उसमे अपनी भी चैरिटी सम्मिलित कर दी।
यह सत्य है कि मनुष्य इस संसार से कुछ भी लेकर नहीं जाता उसका शरीर भी राख होकर पंच तत्व में विलीन हो जाता है। पटाक्षेप [ पर्दा गिर जाना ] हो जाता है। कृष्ण ने गीता में कहा है ,"तू क्या लेकर आया है और क्या लेकर जायेगा ?न पिता,न पति ,न पत्नी,न पुत्र,भाई बंधु कोई भी तेरा नहीं है ,तू उस परमपिता की संतान है और अपनी समझ से अच्छे कर्म करने के लिए आया है। सावित्री एक ऐसा नाम है जिसे मैं अपने स्वरचित संग्रह में जोड़ने जा रही हूँ। यह संग्रह मेरे इस ब्लॉग पर हमेशा रहेगा। और मेरे लेखन में यह नाम भी चिरंतन {सदैव } रहेगा।
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