अगले तीनो सप्ताह बस भागदौड़ के ही रहे। सबके नाप लेकर ड्रेसेस तैयार करवाना और पहना कर देखना ,आशा शर्मा मैडम ने यह कार्य बखूबी किया था। सिंधु वर्गीस मैडम भी संतुष्ट थीं। उन्होंने एक महत्वपूर्ण कार्य भी निपटाया था कि समय सारिणी को इस हिसाब से बनाया था कि उन सभी प्रतिभागियों को ड्रेस परिवर्तन,मेक-अप परिवर्तन में पर्याप्त समय मिले जिनके एक से अधिक कार्यक्रम थे। ये सभी कुछ चल रहा था और साथ ही दैनिक पीरियड्स भी। कोई भी उसमे पिछड़ना नहीं चाहता था। अंतिम दिन ड्रेस पहना कर फाइनल रिहर्सल की गई ताकि सभी अपने अपने रोल के फील को अपनी अभिव्यक्ति में ला सकें।
चूँकि तहसीलदार साहब नए थे और ट्रांसफर होकर आये थे ,प्रिंसिपल सर ने सिंधु वर्गीस और आशा शर्मा मैडम को उनके पास मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण देने को भेज दिया। वे काफी हंसमुख व्यक्तित्व के स्वामी थे। बातचीत में सिंधु मैडम ने अंजुरी की प्रशंसा भी की। उन्होंने सहर्ष ही मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
प्रतिवर्षानुसार कसबे के सभी गणमान्य नागरिकों को भी निमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम का समय संध्या 7 से 8.30 था जो कार्ड पर छपा हुआ था। रात को सभी गणमान्य अतिथियों प्राध्यापकों एवं छात्र छात्राओं का प्रीतिभोज भी था। सभी तरह के कार्यों की जिम्मेदारी प्राचार्य महोदय ने विभिन्न व्याख्याताओं और प्राध्यापकों को सौंप दिया था।
यह एक बेहतरीन टीम थी .सभी के बीच बहुत ही सुन्दर तालमेल था और सभी अपने अपने विषयों के निष्णात थे और जब से महाविद्यालय आरम्भ हुआ था ,पिछले तीन वर्षों से निपुणता से इस दिन को महोत्सव की तरह मनाते थे। यह तारीख़ 22 जनवरी अब तो क़स्बे के लोगों के लिए भी चिर प्रतीक्षित तारीख़ बन गई थी क्यों की सम्पूर्ण जनता ही इस कार्यक्रम का दर्शक वर्ग थी। ---क्रमशः
चूँकि तहसीलदार साहब नए थे और ट्रांसफर होकर आये थे ,प्रिंसिपल सर ने सिंधु वर्गीस और आशा शर्मा मैडम को उनके पास मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण देने को भेज दिया। वे काफी हंसमुख व्यक्तित्व के स्वामी थे। बातचीत में सिंधु मैडम ने अंजुरी की प्रशंसा भी की। उन्होंने सहर्ष ही मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
प्रतिवर्षानुसार कसबे के सभी गणमान्य नागरिकों को भी निमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम का समय संध्या 7 से 8.30 था जो कार्ड पर छपा हुआ था। रात को सभी गणमान्य अतिथियों प्राध्यापकों एवं छात्र छात्राओं का प्रीतिभोज भी था। सभी तरह के कार्यों की जिम्मेदारी प्राचार्य महोदय ने विभिन्न व्याख्याताओं और प्राध्यापकों को सौंप दिया था।
यह एक बेहतरीन टीम थी .सभी के बीच बहुत ही सुन्दर तालमेल था और सभी अपने अपने विषयों के निष्णात थे और जब से महाविद्यालय आरम्भ हुआ था ,पिछले तीन वर्षों से निपुणता से इस दिन को महोत्सव की तरह मनाते थे। यह तारीख़ 22 जनवरी अब तो क़स्बे के लोगों के लिए भी चिर प्रतीक्षित तारीख़ बन गई थी क्यों की सम्पूर्ण जनता ही इस कार्यक्रम का दर्शक वर्ग थी। ---क्रमशः
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