बस में दोनों ही हँसते मुस्कुराते ,कुछ पढाई की ,कुछ स्पोर्ट्स की ,कुछ करेंट अफेयर्स की बातें करते रहे। चौहान सर और आशा शर्मा मैडम भी बातों में मशगूल हो गए थे। सही समय पर बस निर्दिष्ट तक जा पहुंची। बस से उतर कर कमलेश्वर ने सभी के बैग्स उतरवाए। जिला महाविद्यालय पास ही था और सभी के रहने की व्यवस्था वहीँ रखी गई थी.वे लोग अपने अपने बैग्स लिए एक ताँगे पर सवार होकर महाविद्यालय जा पहुंचे। चौहान सर ने ऑफिस में जाकर अपनी एंट्री करवाई। महाविद्यालय के हॉस्टल में दो आस पास के दो छोटे छोटे कमरे अलॉट किये गए। एक चौहान सर और कमलेश्वर के लिए ,दूसरा आशा शर्मा मैडम और अंजूरी के लिए। उन्हें मैचेस की डिटेल्स भी दे दी गईं थीं।
थोड़ी ही देर के बाद चौहान सर और कमलेश्वर जाकर बैडमिंटन के तीनो ही कोर्ट्स देख आये थे जो आस पास ही थे। कई छात्र छात्राएं दिखाई पद रहीं थीं जो अलग अलग स्थानों से कॉम्पिटिशन में भाग लेने आये थे। चौहान सर और कमलेश्वर के वापस आने तक सांझ हो आयी थी। उन्होंने कमरे से बाहर निकल कर कुछ घुमते फिरते हुए खाना खाकर आने का निश्चय किया।
वे सभी तैयार हो गए और कमरों में ताला लगा कर बाहर निकल आये। सबसे पहले वे महाविद्यालय के पास ही स्थित एक विख्यात बाग़ में गए। दूसरे दिन अंजूरी और कमलेश्वर के एक एक मैच थे,वे लोग रस्ते में काफी देर तक मैच की रणनीति के बारे में बात करते रहे।
बाग़ बहुत ही सुन्दर था। रंग बिरंगे फूलों के पौधे ,करीने से बानी क्यारियां ,बड़े घने पेड़ और बाग़ के बीचों बीच एक सुन्दर सा झरना भी था। उसके इर्द गिर्द गोलाकार मुंडेर बानी हुई थी ,अंजूरी उस पर बैठ गई। आशा शर्मा मैडम और चौहान सर काफी दूर एक पेड़ के नीचे खड़े होकर बातें कर रहे थे,कमल एकटक अंजूरी को निहार रहा था। उसके दिल ने कहा ," कितनी सुन्दर लग रही है ,मानो किसी कविता की नायिका हो।"क्या कभी हम एक दूसरे के हो पाएंगे ?
उधर अंजूरी भी बैठ कर सोच रही थी कि उसके शांत जीवन में कमल के आने से हलचल मच गई है और उसे इस बात की भी धूमिल सी ही सम्भावना दिखती है कि कभी वे दोनों एक दूसरे के हो पाएं।
थोड़ी ही देर के बाद चौहान सर और कमलेश्वर जाकर बैडमिंटन के तीनो ही कोर्ट्स देख आये थे जो आस पास ही थे। कई छात्र छात्राएं दिखाई पद रहीं थीं जो अलग अलग स्थानों से कॉम्पिटिशन में भाग लेने आये थे। चौहान सर और कमलेश्वर के वापस आने तक सांझ हो आयी थी। उन्होंने कमरे से बाहर निकल कर कुछ घुमते फिरते हुए खाना खाकर आने का निश्चय किया।
वे सभी तैयार हो गए और कमरों में ताला लगा कर बाहर निकल आये। सबसे पहले वे महाविद्यालय के पास ही स्थित एक विख्यात बाग़ में गए। दूसरे दिन अंजूरी और कमलेश्वर के एक एक मैच थे,वे लोग रस्ते में काफी देर तक मैच की रणनीति के बारे में बात करते रहे।
बाग़ बहुत ही सुन्दर था। रंग बिरंगे फूलों के पौधे ,करीने से बानी क्यारियां ,बड़े घने पेड़ और बाग़ के बीचों बीच एक सुन्दर सा झरना भी था। उसके इर्द गिर्द गोलाकार मुंडेर बानी हुई थी ,अंजूरी उस पर बैठ गई। आशा शर्मा मैडम और चौहान सर काफी दूर एक पेड़ के नीचे खड़े होकर बातें कर रहे थे,कमल एकटक अंजूरी को निहार रहा था। उसके दिल ने कहा ," कितनी सुन्दर लग रही है ,मानो किसी कविता की नायिका हो।"क्या कभी हम एक दूसरे के हो पाएंगे ?
उधर अंजूरी भी बैठ कर सोच रही थी कि उसके शांत जीवन में कमल के आने से हलचल मच गई है और उसे इस बात की भी धूमिल सी ही सम्भावना दिखती है कि कभी वे दोनों एक दूसरे के हो पाएं।
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