हलाहल-------
पक्ष विपक्ष दोनों ही करते,
एक दूसरे पर आक्षेप,
कभी रूठते कभी मनाते,
समझ न आये इनके भेद।
कभी आरोप कभी प्रत्यारोप,
कब हो जाये गठबंधन,
कौन बिका किस पद के बदले,
किसका होता महिमामंडन।
जाती प्रजाति सम्प्रदाय में,
बाँट दिए हैं देश के टुकडे,
आरक्षण के नाम पे हुए ,
जनता के कितने ही टुकड़े।
इनकी देखा देखी हो गए,
देश के सारे अफसर भ्रष्ट,
बाबू चपरासी भी सारे,
करते जा रहे देश को नष्ट।
एकजुट अपराधी सारे,
चोर चोर मौसेरे भाई,
यह दे मुझको,मैं वह दूंगा,
बनी जा रही यह सच्चाई।
दीमक बन कर चाट रहे हैं,
बरसों से चांदी काट रहे हैं,
गरीब और गरीब बन गया,
अमीर मस्ती मार रहे हैं।
लगता है जैसे हुआ निरर्थक,
वीर शहीदों का आत्मोत्सर्ग,
क्या ऐसा ही देश मिलेगा ?
क्या हो पाए सपने सार्थक?
गाँधी जैसा कोई नेता ,
अब शायद ही कभी बने,
एक लंगोटी,एक लकुटिया,
जिसके पीछे देश चले।
कभी कभी जब खुलती पोल,
फट जाता तब इनका ढोल,
जग जाहिर तब हो जाता है,
जीवन का सार भूगोल।
जब तब होते हुए अनावरण,
कर देते किंकर्तव्यविमूढ ,
आँखें फाड़े देखा करते,
हैं हम सारे मूढ़ के मूढ़।
निरंतर { कंटीन्यू}
पक्ष विपक्ष दोनों ही करते,
एक दूसरे पर आक्षेप,
कभी रूठते कभी मनाते,
समझ न आये इनके भेद।
कभी आरोप कभी प्रत्यारोप,
कब हो जाये गठबंधन,
कौन बिका किस पद के बदले,
किसका होता महिमामंडन।
जाती प्रजाति सम्प्रदाय में,
बाँट दिए हैं देश के टुकडे,
आरक्षण के नाम पे हुए ,
जनता के कितने ही टुकड़े।
इनकी देखा देखी हो गए,
देश के सारे अफसर भ्रष्ट,
बाबू चपरासी भी सारे,
करते जा रहे देश को नष्ट।
एकजुट अपराधी सारे,
चोर चोर मौसेरे भाई,
यह दे मुझको,मैं वह दूंगा,
बनी जा रही यह सच्चाई।
दीमक बन कर चाट रहे हैं,
बरसों से चांदी काट रहे हैं,
गरीब और गरीब बन गया,
अमीर मस्ती मार रहे हैं।
लगता है जैसे हुआ निरर्थक,
वीर शहीदों का आत्मोत्सर्ग,
क्या ऐसा ही देश मिलेगा ?
क्या हो पाए सपने सार्थक?
गाँधी जैसा कोई नेता ,
अब शायद ही कभी बने,
एक लंगोटी,एक लकुटिया,
जिसके पीछे देश चले।
कभी कभी जब खुलती पोल,
फट जाता तब इनका ढोल,
जग जाहिर तब हो जाता है,
जीवन का सार भूगोल।
जब तब होते हुए अनावरण,
कर देते किंकर्तव्यविमूढ ,
आँखें फाड़े देखा करते,
हैं हम सारे मूढ़ के मूढ़।
निरंतर { कंटीन्यू}
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें