विघटन-------
इच्छा और इच्छा पूर्ती में,
पल भर भी ना देरी हो,
ऐसे भाग्यवान लोगों का,
जीवन दिखता है मधुबन।
जिसके पास बड़ी संपत्ति,
उसके लिए नगण्य विप्पति,
उसकी गणना श्रेणी ऊपर,
श्रेष्ठ हो वह ,हो चाहे अधम।
रुपयों की ढेरी पर भी,
कमनीया है अल्प वसन,
घोर गरीबी में तन ढ़कती,
जीर्ण शीर्ण हो रहे वसन।
किसी का जीवन तृष्णाओं का,
एक बड़ा विकराल जाल,
हर दिन हर पल नई समस्या,
हर इच्छा का करें दमन।
किसी की आँखें बात जोहती ,
कब आएगी सुख समृद्धि,
कब साड़ी समस्याओं का,
हो पाएगा निराकरण।
आज नही तो कल सुख होगा,
पूरे होंगे सभी स्वपन,
जल्दी ही होगा जीवन में,
नई सुबह का पदार्पण।
आर्थिक स्तर पर होता निर्भर,
हर व्यक्ति का जीवन स्तर ,
कर्म अधिकतर निर्भर होते,
लिया कहाँ उसने जनम।
किस परिवेश में पलता है वह,
कैसा जीवन जीता है वह,
कैसे उसके मातपिता हैं,
और कैसे हैं मित्रगण।
कई निरक्षर और अज्ञानी,
उनकी चिंता कपडा रोटी,
और कई ने शिक्षा पाकर,
जीवन का किया है परिमार्जन।
शिक्षा से होता परिमार्जन,
ऐसा कहते हैं गुरुजन,
किन्तु कई शिक्षित क्यों ऐसे,
अपराधों का मन में गुंथन।
मातपिता की हुई उपेक्षा,
अधिकाधिक ही नवयुग में,
घर में हों तो भी एकांतित ,
या रखे गए वे वृद्धाश्रम।
शक्तिशाली शक्तिहीन का,
करता रहता है शोषण,
बलात्कार से कृत्य वीभत्स,
मानवता का करें हनन।
मन में,मनोवृत्ति में खोट,
अच्छाई छुप गई इस ओट ,
सिसक रही है ईमानदारी,
सत्य कर रहा है रुदन।
नीति शिक्षा हुई विलुप्त,
अपराधों की आई बाढ़,
दस में आठ अपराधिक हो गए,
स्थिति पहुँच गई बिंदु चरम।
छवि के दो विपरीत रूप ये,
बढा रहे अपराध दिनों दिन,
चोरी डाके और अपहरण,
देख देख हो रहे पलायन।
कुछ हर्षित,और कई हैं व्यथित,
एक समाज कई भाव समाहित,
खिन्न गरीब,धनवान है मुदित,
विविध भाव हैं,हर आनन।
सुबह दोपहर शाम यही है,
दिन भी यही और रात यही है,
अलग अलग तरह के अनुभव ,
होते अलग अलग तनमन।
सबकी अपनी है जीवन शैली,
सबके अपने होते अनुभव,
इसीलिए अलग होते हैं,
सभी व्यक्तियों के चिंतन।
कितना अच्छा हो सुख पायें,
राम राज्य से सरे जन,
चिंताओं का शीघ्र अंत हो,
बन गई जो अन्धकार गहन।
प्रभु की रचनाएँ अनुपम,
सारी सृष्टि है अनुपम,
जीवन की कड़ी धुप ने लेकिन,
बना दिये हैं मन बदरंग।
हो सकता ना पूर्ण सत्य हो,
और मेरी ना बात सटीक,
झूठ नहीं हो सकता पूरा,
मेरा किया यह आकलन।
----------------------निरंतर [ कंटीन्यू]
इच्छा और इच्छा पूर्ती में,
पल भर भी ना देरी हो,
ऐसे भाग्यवान लोगों का,
जीवन दिखता है मधुबन।
जिसके पास बड़ी संपत्ति,
उसके लिए नगण्य विप्पति,
उसकी गणना श्रेणी ऊपर,
श्रेष्ठ हो वह ,हो चाहे अधम।
रुपयों की ढेरी पर भी,
कमनीया है अल्प वसन,
घोर गरीबी में तन ढ़कती,
जीर्ण शीर्ण हो रहे वसन।
किसी का जीवन तृष्णाओं का,
एक बड़ा विकराल जाल,
हर दिन हर पल नई समस्या,
हर इच्छा का करें दमन।
किसी की आँखें बात जोहती ,
कब आएगी सुख समृद्धि,
कब साड़ी समस्याओं का,
हो पाएगा निराकरण।
आज नही तो कल सुख होगा,
पूरे होंगे सभी स्वपन,
जल्दी ही होगा जीवन में,
नई सुबह का पदार्पण।
आर्थिक स्तर पर होता निर्भर,
हर व्यक्ति का जीवन स्तर ,
कर्म अधिकतर निर्भर होते,
लिया कहाँ उसने जनम।
किस परिवेश में पलता है वह,
कैसा जीवन जीता है वह,
कैसे उसके मातपिता हैं,
और कैसे हैं मित्रगण।
कई निरक्षर और अज्ञानी,
उनकी चिंता कपडा रोटी,
और कई ने शिक्षा पाकर,
जीवन का किया है परिमार्जन।
शिक्षा से होता परिमार्जन,
ऐसा कहते हैं गुरुजन,
किन्तु कई शिक्षित क्यों ऐसे,
अपराधों का मन में गुंथन।
मातपिता की हुई उपेक्षा,
अधिकाधिक ही नवयुग में,
घर में हों तो भी एकांतित ,
या रखे गए वे वृद्धाश्रम।
शक्तिशाली शक्तिहीन का,
करता रहता है शोषण,
बलात्कार से कृत्य वीभत्स,
मानवता का करें हनन।
मन में,मनोवृत्ति में खोट,
अच्छाई छुप गई इस ओट ,
सिसक रही है ईमानदारी,
सत्य कर रहा है रुदन।
नीति शिक्षा हुई विलुप्त,
अपराधों की आई बाढ़,
दस में आठ अपराधिक हो गए,
स्थिति पहुँच गई बिंदु चरम।
छवि के दो विपरीत रूप ये,
बढा रहे अपराध दिनों दिन,
चोरी डाके और अपहरण,
देख देख हो रहे पलायन।
कुछ हर्षित,और कई हैं व्यथित,
एक समाज कई भाव समाहित,
खिन्न गरीब,धनवान है मुदित,
विविध भाव हैं,हर आनन।
सुबह दोपहर शाम यही है,
दिन भी यही और रात यही है,
अलग अलग तरह के अनुभव ,
होते अलग अलग तनमन।
सबकी अपनी है जीवन शैली,
सबके अपने होते अनुभव,
इसीलिए अलग होते हैं,
सभी व्यक्तियों के चिंतन।
कितना अच्छा हो सुख पायें,
राम राज्य से सरे जन,
चिंताओं का शीघ्र अंत हो,
बन गई जो अन्धकार गहन।
प्रभु की रचनाएँ अनुपम,
सारी सृष्टि है अनुपम,
जीवन की कड़ी धुप ने लेकिन,
बना दिये हैं मन बदरंग।
हो सकता ना पूर्ण सत्य हो,
और मेरी ना बात सटीक,
झूठ नहीं हो सकता पूरा,
मेरा किया यह आकलन।
----------------------निरंतर [ कंटीन्यू]
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