हलाहल---
निर्माण अधीन भवन के परिसर,
रेत सीमेंट से सराबोर,
सड़क किनारे झुग्गी में,
धूल फांकते ये हर और।
नई बन रही सड़क किनारे,
नंगे अधनंगे से बच्चे ,
इनकी किस्मत कभी न बदली,
सपने से पकवान हैं अच्छे।
रोज कमाना,रोज पकाना,
कठिन परिश्रम करें निरंतर,
अचरज होता जब पाते हम,
दो वर्गों में इतना अंतर।
मैं कहती हूँ ये तो हैं बस,
पशु योनि से कुछ ही ऊपर
सभ्य समाजी कहने को भर,
कपडे ढंकते तन के ऊपर। -----निरंतर [ कंटिन्यु ]
निर्माण अधीन भवन के परिसर,
रेत सीमेंट से सराबोर,
सड़क किनारे झुग्गी में,
धूल फांकते ये हर और।
नई बन रही सड़क किनारे,
नंगे अधनंगे से बच्चे ,
इनकी किस्मत कभी न बदली,
सपने से पकवान हैं अच्छे।
रोज कमाना,रोज पकाना,
कठिन परिश्रम करें निरंतर,
अचरज होता जब पाते हम,
दो वर्गों में इतना अंतर।
मैं कहती हूँ ये तो हैं बस,
पशु योनि से कुछ ही ऊपर
सभ्य समाजी कहने को भर,
कपडे ढंकते तन के ऊपर। -----निरंतर [ कंटिन्यु ]
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