लगभग साढ़े नौ बजे वे लोग मथुरा पहुँच गए । यह नीलांजना का ही प्लान था कि सबसे पहले वह कृष्ण जन्म स्थान ही देखेगी , एक अधेड़ से मार्ग पूछते ही वह कहने लगा कि मैं मंदिर के बाहर ही पार्किंग दिलवाऊँगा सारे दर्शन करवाऊँगा ढाई सौ रुपए लूँगा । ड्राइवर ने टैक्सी आगे बढ़ा दी ।आगे फिर एक युवक आया कि पार्किंग नाही मिलेगी , पार्किंग के 100 रुपए लगेंगे , मैं सौ रुपए में पार्किंग भी दिलवाऊँगा और दर्शन भी करवाऊँगा ।सुबीर को लगा कि शायद सही हो उसे टैक्सी में बिठा लिया । उसने टैक्सी घुमवा ली , अब टैक्सी एक रिहाईशी कॉलोनी से गुजर रही थी , कुछ दूर जाकर टैक्सी रुकवाई गई और पहले वाला लड़का यह कहते हुए उतर गया कि आगे मंदिर का दर्शन यह करवाएगा , उसने एक अन्य लड़के को टैक्सी पर चढ़वा दिया। उसने टैक्सी को पार्किंग में ही पार्क करवाया यह कहकर कि वह जहां पार्किंग दिलवाने वाला था वह full है । अब पार्किंग के सौ भी देने थे और इस लड़के को भी 100 देने थे । मंदिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर जाना था , सामने केशवचंद्र का मंदिर था , उसने बताया चूँकि कृष्ण बे केश पकड़ कर कंस का वध किया था अतः उनका एक नाम केशव है ।वहाँ कुछ भक्त गण सुर में भजन गा रहे थे । नीलांजना केशव की मूर्ति अश्रु पूरित आँखो से देखती रही। आगे सीढ़ियाँ चढ़ कर कृष्ण जन्म स्थान तक पहुँचे , नीलांजना अवाक् रह गई , “ इतनी बड़ी मस्जिद ? “ नीलांजना ने कहा पहले तो नही थी यह ? वह लड़का जिसका नाम विजय था वह बोला कि हाँ पिछले कुछ वर्षों में बनी है , कृष्ण जन्म स्थान के सात कमरे कारावास के थे , जिनमे छः में मस्जिद बन गई है किंतु वर्ष में दो बार ही नमाज़ पड़ने की अनुमति है । वे अंदर प्रवेश कर गए , भक्तों की भीड़ उस फ़र्श को छू रही थी जो वास्तविक कृष्ण जन्म स्थान था , नीलांजना और सुबीर ने भी श्रद्धा से स्पर्श किया ! —— Continued
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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