रास बिहारी पाठक ने आगे बताना आरम्भ किया , ग्यारह वर्ष की आयु में कृष्ण मथुरा चले गए थे तथा वहाँ उन्होंने कंस का वध किया । उसने एक अचंभित करने वाली बात भी बताई कि त्रेता युग में राम के साथ वन में भटकते एवं सेवा करते हुए एक दिन लक्ष्मण के मन में यह विचार आया कि मैं बड़ा भाई क्यूँ न हुआ ? राम अंतर्यामी थे , उन्होंने यह निश्चय किया कि द्वापर में तू बड़ा भाई होगा , इस प्रकार , वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ से बलराम का जन्म हुआ जिन्हें कृष्ण “ दाऊ “ ( बड़े भाई कह कर पुकारते थे )
जब वासुदेव एवं यशोदा वृद्ध हुए तब उन्होंने कृष्ण से कहा कि “ तुम तो व्यस्त हो , हम वृद्धावस्था में कहाँ रहें तब कृष्ण ने देवकी वासुदेव को भी नंद यशोदा के साथ ला कर रख दिया , यह बात नीलांजना को अचंभित करने वाली थी । जब वे लोग गोकुल पहुँचे तब ग्यारह बज चुके थे । नीलांजना की रात नींद पूरी नही हुई थी और उन लोगों ने सुबह से पानी का घूँट तक नही लिया था ।
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