तृष्णा --------
वर्षों से मन में थी तृष्णा ,
वर्षों से मन था दर्शनाभिलाषी,
चिर प्रतीक्षित यह आशा कल पूर्ण हुई,
मन धन्य हुआ,धन धन्य हुआ।
जब भी सुनती थी मैं ,
तुम यहाँ हो,तुम वहां हो,
जा पहुंचती थी बस ,करने तुम्हारा दर्शन ,
पूरी तैयारी के साथ,
तुम कभी न दिखे ,कभी न मिले,
कभी कभी बस देखा था तुम्हे चित्रों में,
किन्तु कल पूर्ण हुआ मन का स्वपन,
पा लिया मैंने भी तुम्हारा दर्शन ,
अभिभूत सी हो गयी हूँ मैं
तुम्हे देख कर,
अपनी ही हर्षातिरेक की किलकारी से,
अचम्भित हो गई हूँ मैं ,
कितने सुन्दर हो तुम ,
स्निग्ध ,धवल स्फटिक से,
निर्मल ,प्रभु के आशीर्वाद से ,
कोमल ,किसी रेशम के सूत्र से,
मन को ,अंतर्मन को ,
स्पर्ष कर गया तुम्हारा कोमल स्पर्ष ,
क्या मैं सबसे कह दूँ ?कौन हो तुम?
आकाश से उतरकर समस्त प्रकृति को,संसृति को ,
आच्छादित करने वाले ,
रजत रश्मियों से, धरा पर छाने वाले ,
तुम हिमकण हो,तुम हिमकण हो !!
वर्षों से मन में थी तृष्णा ,
वर्षों से मन था दर्शनाभिलाषी,
चिर प्रतीक्षित यह आशा कल पूर्ण हुई,
मन धन्य हुआ,धन धन्य हुआ।
जब भी सुनती थी मैं ,
तुम यहाँ हो,तुम वहां हो,
जा पहुंचती थी बस ,करने तुम्हारा दर्शन ,
पूरी तैयारी के साथ,
तुम कभी न दिखे ,कभी न मिले,
कभी कभी बस देखा था तुम्हे चित्रों में,
किन्तु कल पूर्ण हुआ मन का स्वपन,
पा लिया मैंने भी तुम्हारा दर्शन ,
अभिभूत सी हो गयी हूँ मैं
तुम्हे देख कर,
अपनी ही हर्षातिरेक की किलकारी से,
अचम्भित हो गई हूँ मैं ,
कितने सुन्दर हो तुम ,
स्निग्ध ,धवल स्फटिक से,
निर्मल ,प्रभु के आशीर्वाद से ,
कोमल ,किसी रेशम के सूत्र से,
मन को ,अंतर्मन को ,
स्पर्ष कर गया तुम्हारा कोमल स्पर्ष ,
क्या मैं सबसे कह दूँ ?कौन हो तुम?
आकाश से उतरकर समस्त प्रकृति को,संसृति को ,
आच्छादित करने वाले ,
रजत रश्मियों से, धरा पर छाने वाले ,
तुम हिमकण हो,तुम हिमकण हो !!
wonderful
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